卷四

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愬于方伯,以圖救衛,而托歸唁為辭耳。

    」餘見下。

     [一章]凡詩人之言,婉者直之,直者婉之,全不可執泥。

    集傳以其直言馳驅至衛,遂謂「許穆夫人真至衛,未至,而許之大夫有奔走跋涉而來者;夫人知其必将不可歸之義來告,故心以為憂」。

    如此說詩,真可發笑!按「大夫跋涉」有二說:鄭氏謂衛大夫來告難于許;蘇氏謂許大夫之吊衛者,夫人将歸親唁其兄,雖大夫之往而不足以解憂也。

    二說皆可通。

    乃集傳獨以為許大夫奔走來追夫人而還,此何意見耶嚴氏曰「首章婉而未露」。

     [二章、三章]嚴氏曰:「言爾未必是,我未必非,始微露己之意見與許人别,而猶未遽言之也。

    」 [四章]嚴氏曰:「蓋至是始慨然責之,而不得不言其情矣。

    下章發之。

    」 [五章]嚴氏曰:「末章乃言其情,謂我之所思無他,思所以救衛耳。

    我将控告于大國而求其能救衛者。

    誰可因藉誰肯來至多方圖之,必有所濟。

    我所思蓋在此,非徒歸也。

    以許之小而責其救衛,則為不通曉于事。

    今欲求大國之援,其說非迂遠難行也,非閟塞不通也。

    其後齊桓卒救衛而存之,然後信夫人所思為有理,而許人真狂無謀矣。

    」 【載馳五章:一章六句,二章、三章章四句,四章六句,五章八句。

    】孔氏曰:「左傳 ,叔孫豹、鄭子家賦載馳之四章。

    然彼賦載馳,義取控引大國,今「控于大邦」乃在卒章。

    言賦四章者,杜預雲:『并賦四章以下。

    賦詩雖意有所主,為首引之,勢并上章而賦之也。

    』」。

    其說甚明。

    蘇氏錄章句之後,又載「或言四章,一章、三章章六句,二章、四章章八句」。

    此本引或說,非以為然。

    集傳乃謂「今從蘇氏」,是未見孔疏而并不詳蘇語耳。

     衛 淇奧 瞻彼淇奧,綠竹猗猗。

    有匪君子,如。

    切。

    如。

    磋。

    如。

    琢。

    如。

    磨。

    本韻。

    [評]虛寫,未成學。

    瑟、兮、兮,[評]儀容。

    赫、兮、咺、兮、有、匪、君、子,終、不、可、谖、兮本韻。

    兮、興也。

    下同。

     瞻彼淇奧,綠竹青青。

    有匪君子,充。

    耳。

    琇。

    瑩。

    會。

    弁。

    如。

    星。

    本韻。

    [評]實寫。

    瑟、兮、兮,赫、兮、咺、兮、有、匪、君、子,終、不、可、谖、兮。

     瞻彼淇奧,綠竹如箦。

    [評]變。

    有匪君子,如。

    金。

    如。

    錫。

    如。

    圭。

    如。

    璧。

    本韻。

    [評]虛寫。

    現成,已成。

    德。

    寬。

    兮。

    綽。

    兮。

    [評]變。

    猗。

    重。

    較。

    兮。

    [評]儀容妙旨。

    善。

    戲。

    谑。

    兮。

    不。

    為。

    虐。

    本韻。

    兮。

    [評]言語妙旨。

     小序謂「美武公之德」,未有據;姑依之。

     學者于此每疑武公弒兄篡位,不足當此。

    予以為不然,于柏舟篇已略論之。

    今閱孔氏曰:「按世家雲『武公以其賂賂士,以襲攻共伯』,而殺兄篡國,得為美者,美其逆取順守,德流于民,故美之。

    齊桓、晉文皆篡弒而立,終建大功,亦此類也。

    」 切、磋、琢、磨,皆所以治器,屬虛狀武公用功于學也。

    荀子曰:「人之于文學也,猶玉之于琢磨也。

    詩曰:『如切如磋,如琢如磨』,謂學問也。

    」其言可證,不涉自修。

    上二章文變。

    「充耳琇瑩,會弁如星」,實指武公之服飾而言。

    三章「如金,如錫,如璧」文仍首章,亦屬虛狀。

    「金、錫」,現成物,「圭、璧」,已成物,言其德也。

    其首章「瑟、僩、赫、咺」,皆美其儀容而贊之,與上「切、磋、琢、磨」不涉。

    二章重述一遍。

    三章文變。

    「寬綽」二句亦言其儀容,「善谑」二句又言其言語。

    此詩三章之章法也。

     [一章]「綠竹」,爾雅謂「綠」為王刍,「竹」為篇蓄,是使為綠色之竹,二章不當又雲「青青」矣。

    「切、磋、琢、磨」四字,大抵皆治玉、石、骨諸物之名,本不必分;而爾雅分之曰「骨謂之切,象謂之磋,玉謂之琢,石謂之磨」,亦自有義。

    集傳則以「切、磋」屬骨、角,「琢、磨」屬玉,石,又以「切、磋」與「琢、磨」各分先、後,并不可解;又全引大學之文以釋此詩。

    按大學釋「切磋」為「道學」,「琢磨」為「自修」,「瑟僩」為「恂栗」,「赫咺」為「威儀」,此古文斷章取義,全不可據。

    豈有「切、磋、琢、磨」四字平列,而知其分「學」與「修」之理!又「瑟、僩、赫、咺」别為贊儀容之辭,與上義不連,亦不得平釋為四事也。

    大學非解詩;今以其為解詩而用以解詩,豈不謬哉! [三章]錫即銀。

    古人銀、錫不分,稱銀亦曰「錫」。

    禹貢「惟金三品」,為黃、白、赤三色。

    史平準書,「黃金為上,白金為中,赤金為下」,即三品之義。

    「黃金」,金也;「白金」,銀也;「赤金」,銅也。

    金本為金、銀、銅、錫、鐵、鉛之總名,其鐵、鉛以賤故不列「三品」之内,而錫即屬于銀,統名「白金」也。

    考工記攻金之工皆曰「金、錫」,金即銅,錫即銀,故曰金幾分,錫居幾,以為斧、斤、戟、刃之屬。

    「●氏為量,煎金、錫,聲中黃鐘之宮」。

    假如以今之錫,豈可攙和作斧、斤、戟、刃,而量安能聲中宮乎自爾雅曰,「黃金謂之璗,白金謂之銀,錫謂之鈏」,始分銀、錫之名,而單以銀為白金。

    此周末秦人之論也。

    然史平準書、漢食貨志猶皆稱「銀錫」,又言「漢武帝造銀錫為白金」,其稱皆近古。

    說文則釋錫曰「銀、鉛之間」,蓋亦疑之而無可為辭,故如是雲耳。

    今世錫與鉛近,與銀則絕遠,豈銀、鉛之間哉!此予昔時庸言錄中語,今錄于此。

    又閱何玄子于此詩論錫亦見及之,益信其有同然。

    然予論有異何處,不全同也。

    「寬、綽」,書無逸曰「不寬綽厥心」,則古蓋以「寬、綽」為善字,後世鮮用矣!「猗」,倚也。

    倚車之時而覺其寬綽,又不言其言語若何,而但言「善戲谑」,皆一往摹神。

    古人體察之妙如此,其心坎非後世人所易測也。

     【淇奧三章,章九句。

    】 考盤 考盤在澗,碩人之寬。

    獨寐寤言,永矢弗谖!本韻。

    ○賦也。

    下同。

     考盤在阿,碩人之薖。

    獨寐寤歌,永矢弗過!本韻。

     考盤在陸,碩人之軸。

    獨寐寤宿,永矢弗告!本韻。

     此詩人贊賢者隐居自矢,不求世用之詩。

    小序謂「刺莊公」,無謂;集傳不從,是。

     [一章]「考」,成也。

    左傳「考仲子之宮」,雜記「路寝成則考之」,是也。

    「盤」,疑是架木為屋之名;或以其依山水盤結,故名之與毛傳訓「考盤」為「成樂」,未允。

    陳氏以「考」為扣,以「盤」為器名,不可從。

    使為擊器,則不當雲「在澗」、「在谷」,且雲「在陸」矣。

    「在澗」雲雲者,正謂或依澗、谷,或于平原架屋以處之意耳。

    又下句接以「之寬」、「之薖」、「之軸」,亦貼居處言。

    使為擊器,義亦不蒙。

    「碩人」指隐者,「寬」謂屋宇寬廣也。

    集傳解「碩人之寬」,謂「碩大寬廣」,删去「人」字,可駭。

    「永失弗谖」,謂自誓弗忘習隐初志。

    集傳謂「不忘此