文選

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故禦史周君碣〔一〕 有唐貞臣汝南周氏,諱某字某〔二〕。

    以諫死〔三〕,葬於某。

    貞元十二年,柳宗元立碣於其墓左〔四〕。

     在天寶年,有以諂諛至相位〔五〕,賢臣放退〔六〕。

    公爲禦史,抗言以白其事,得死於墀下〔七〕,史臣書之〔八〕。

    公之死,而佞者始畏公議〔九〕。

     於虖!古之不得其死者衆矣〔一〇〕。

    若公之死,志匡王國〔一一〕,氣震姦佞,動獲其所〔一二〕,斯蓋得其死者歟〔一三〕!公之德之才,洽於傳聞〔一四〕,卒以不試〔一五〕,而獨申其節〔一六〕,猶能奮百代之上,以爲世軌〔一七〕。

    第令生於定、哀之間〔一八〕,則孔子不曰“未見剛者”〔一九〕;出於秦、楚之後〔二〇〕,則漢祖不曰“安得猛士”〔二一〕。

    而存不及興王之用〔二二〕,沒不遭聖人之歎〔二三〕,誠立志者之所悼也〔二四〕。

    故爲之銘〔二五〕。

    銘曰: 忠爲美,道是履〔二六〕。

    諫而死,佞者止。

    史之志,石以紀〔二七〕,爲臣軌兮〔二八〕。

     〔一〕貞元十二年作。

    禦史:官名。

    唐禦史臺置禦史大夫一員、禦史中丞二員、侍禦史四員、殿中侍禦史六員、監察禦史十員。

    見《舊唐書·職官志三》。

    周君:周子諒,曾任監察禦史,詳見注〔七〕。

    碣:碑石。

    《後漢書·竇憲傳》注:“方者謂之碑,圓者謂之碣。

    ” 〔二〕有:語詞無義,一字不成辭,前加有字,湊足音節,如有虞、有周等。

    貞臣:正直守節之臣。

    《史記·趙世家》:“且夫貞臣也,難(nàn)至而節見。

    ”汝南:唐汝南縣屬河南道蔡州,即今河南汝南縣。

    諱:名。

    人在世時稱其名爲名,死後稱其名爲諱。

     〔三〕以:因爲。

    諫:臣向君進言規勸。

    《集韻》:“諫,諍也。

    ” 〔四〕貞元:唐德宗李适(kuò)年號。

    貞元十二年(七九六)宗元二十四歲,尚未入仕。

    以上叙墓主姓名及立碣時間。

     〔五〕天寶:唐玄宗李隆基年號。

    諂諛至相位:指牛仙客入相事。

    牛仙客,涇州鶉觚人,初爲縣吏,後官州司馬、太僕少卿、節度使。

    任河西節度使時嗇事省用,倉庫積鉅萬,器械犀鋭。

    玄宗不顧中書令張九齡力諫,於開元二十四年十一月授仙客工部尚書、同中書門下三品、知門下省事。

    宗元謂“在天寶年”,當爲筆誤,司馬光曾作辨正,見《資治通鑑考異》卷十三。

     〔六〕賢臣句:指宰相張九齡貶官。

    玄宗欲用仙客爲相,九齡諫止。

    玄宗又欲封仙客,九齡固執如初,玄宗怒,李林甫乘機詆毀九齡。

    開元二十四年十一月,貶九齡爲尚書右丞。

    侍中裴耀卿與九齡友善,玄宗以耀卿、九齡爲阿黨,因降耀卿爲尚書左丞,並罷知政事。

    九齡既得罪,朝廷之士皆容身保位,無復直言。

     〔七〕公:對人的尊稱。

    抗言:高聲説。

    白:陳述。

    墀(chí):丹墀,宮殿階上地,以丹漆之,曰丹墀。

    《資治通鑑》卷二百十四玄宗開元二十五年四月辛酉:“監察禦史周子諒彈牛仙客非才,引讖書爲證。

    上怒,命左右於殿庭,絶而復蘇;仍杖之朝堂,流瀼州,至藍田而死。

    ” 〔八〕史臣書之:指《玄宗實録》載此事。

    司馬光《資治通鑑考異》卷十三引《實録》雲:“子諒彈奏仙客非才,引妖讖爲證。

    上怒,召入禁中責之。

    左右拉者數四,氣絶而蘇。

    ”注〔五〕至注〔八〕所叙史實尚可參見《舊唐書·玄宗紀》、《舊唐書》及《新唐書》牛仙客本傳。

     〔九〕佞(nìng)者:巧言諂媚之人,指牛仙客。

    議:論。

    沈德潛雲:“筆可截鐵。

    ”(《唐宋八家文讀本》)以上叙周子諒之死及其影響。

     〔一〇〕於虖:音義皆同“嗚呼”。

    不得其死:死得無價值。

     〔一一〕匡:正。

     〔一二〕動獲句:謂他的行爲獲得了預期效果。

    動:舉動,行爲。

    其所:他的處所,指預期效果。

     〔一三〕斯:這。

    蓋:表肯定判斷。

    得其死者:死得值得。

     〔一四〕洽:合。

    章士釗雲:“可能有兩解:一、公之才德,在傳聞中一緻稱許,無有參差,即天下之人皆好之意;一、吾所想像於公之才與德,證之傳聞,若合符節,即《寄蕭俛書》所雲:‘耳與心葉,果於不謬是。

    ’”(《柳文指要》上·卷九碣) 〔一五〕卒以句:謂才與德最終皆不得有所施展。

    卒:結果,最終。

    以:卻。

    試:《説文》:“用也。

    ” 〔一六〕申其節:指直諫而死。

    申:申張,顯示。

    節:節操。

     〔一七〕猶能二句:謂仍能奮起於百世以上,成爲一世的軌範。

    猶:尚,還。

    奮:振起。

    軌:軌範。

     〔一八〕第令:假令。

    定:魯定公,春秋時魯國國君,公元前五〇九至四九四年在位。

    哀:魯哀公,繼定公爲魯君,公元前四九四至四六六年在位。

     〔一九〕未見剛者:語出《論語·公冶長》:“子曰:吾未見剛者。

    或對曰:申棖。

    子曰:棖也慾,焉得剛。

    ”疏:“剛謂質直而理者也。

    ”此借孔子語贊揚周子諒是剛者。

     〔二〇〕秦:秦朝。

    楚:項籍滅秦,自立爲西楚霸王。

     〔二一〕漢祖:漢高祖劉邦。

    劉邦《大風歌》曰:“大風起兮雲飛揚,威加海内兮歸故鄉,安得猛士兮守四方?”此借劉邦詩意贊揚周子諒是衞國猛士。

     〔二二〕存:活着時。

    及:趕上。

    興王:開國之君。

    用:任用。

     〔二三〕沒不句:謂死後也沒有聖人爲之感歎。

    沒:同“殁”,去世。

    遭:受。

     〔二四〕誠立句:謂這實在是有志者所痛心的事。

    誠:確實。

    立志者:有志向的人。

    悼:悲傷。

    以上爲叙所以作碣之故。

     〔二五〕爲之銘:替他作銘。

     〔二六〕道是履:實踐了正義。

    道:真理,正義。

    履:踐而行之。

     〔二七〕史之二句:謂史書記載其事,今以碑碣爲記。

    志:記。

    石:碑石,即碣。

    紀:記。

    《史記·武帝本紀》索隱:“紀者,記也。

    ” 〔二八〕爲臣軌:作爲臣子的軌範。

    以上爲總贊其人之賢。

     【評箋】 明·茅坤雲:“調不入《史》、《漢》,而氣韻亦勁。

    ”(《唐宋八大家文鈔·柳柳州文鈔》卷十二) 清·沈德潛雲:“玄宗罷裴耀卿、張九齡,而相李林甫、牛仙客,此治亂之轉關也。

    子諒以直諫杖死,子諒死而諫者無人矣。

    乃玄宗不聞悔過,而後世不加褒封,立碣表墓,其容已乎!文中不輕下一字,表正直,誅姦諛,居然史筆。

    ”(《唐宋八家文讀本》卷九) 梓人傳〔一〕 裴封叔之第,在光德裡〔二〕。

    有梓人款其門,願傭隟宇而處焉〔三〕。

    所職尋引、規矩、繩墨〔四〕,家不居礱斲之器〔五〕。

    問其能,曰:“吾善度材,視棟宇之制,高深、圓方、短長之宜,吾指使而羣工役焉〔六〕。

    捨我,衆莫能就一宇〔七〕。

    故食於官府,吾受祿三倍〔八〕;作於私家,吾收其直太半焉〔九〕。

    ”他日,入其室,其牀闕足而不能理〔一〇〕,曰:“將求他工。

    ”餘甚笑之,謂其無能而貪祿嗜貨者〔一一〕。

     其後京兆尹將飾官署,餘往過焉〔一二〕。

    委羣材,會衆工。

    或執斧斤,或執刀鋸,皆環立嚮之〔一三〕。

    梓人左持引、右執杖而中處焉〔一四〕。

    量棟宇之任,視木之能,舉揮其杖曰:“斧!”彼執斧者奔而右〔一五〕;顧而指曰:“鋸!”彼執鋸者趨而左。

    俄而斤者斲、刀者削,皆視其色,俟其言,莫敢自斷者〔一六〕。

    其不勝任者,怒而退之,亦莫敢愠焉〔一七〕。

    畫宮於堵,盈尺而曲盡其制,計其毫釐而構大廈,無進退焉〔一八〕。

    既成,書於上棟〔一九〕,曰“某年某月某日某建”,則其姓字也。

    凡執用之工不在列〔二〇〕。

    餘圜視大駭,然後知其術之工大矣〔二一〕。

     繼而嘆曰:彼將捨其手藝,專其心智,而能知體要者歟〔二二〕?吾聞勞心者役人,勞力者役於人,彼其勞心者歟〔二三〕?能者用而智者謀,彼其智者歟〔二四〕?是足爲佐天子、相天下法矣〔二五〕!物莫近乎此也〔二六〕。

    彼爲天下者本於人〔二七〕。

    其執役者,爲徒隸,爲鄉師、裡胥。

    其上爲下士,又其上爲中士、爲上士;又其上爲大夫、爲卿、爲公〔二八〕。

    離而爲六職,判而爲百役〔二九〕。

    外薄四海,有方伯、連率〔三〇〕。

    郡有守,邑有宰,皆有佐政〔三一〕。

    其下有胥吏、又其下皆有嗇夫、版尹,以就役焉〔三二〕,猶衆工之各有執伎以食力也〔三三〕。

    彼佐天子、相天下者,舉而加焉,指而使焉,條其綱紀而盈縮焉〔三四〕,齊其法制而整頓焉〔三五〕,猶梓人之有規矩、繩墨以定制也〔三六〕。

    擇天下之士,使稱其職;居天下之人,使安其業〔三七〕。

    視都知野,視野知國,視國知天下,其遠邇細大,可手據其圖而究焉〔三八〕,猶梓人畫宮於堵而績於成也〔三九〕。

    能者進而由之,使無所德〔四〇〕;不能者退而休之〔四一〕,亦莫敢愠。

    不衒能,不矜名〔四二〕,不親小勞,不侵衆官〔四三〕,日與天下之英才討論其大經,猶梓人之善運衆工而不伐藝也〔四四〕。

    夫然後相道得而萬國理矣〔四五〕。

    相道既得,萬國既理,天下舉首而望曰:“吾相之功也。

    ”後之人循迹而慕曰:“彼相之才也。

    ”士或談殷、周之理者,曰伊、傅、周、召〔四六〕,其百執事之勤勞而不得紀焉〔四七〕,猶梓人自名其功而執用者不列也〔四八〕。

    大哉相乎!通是道者,所謂相而已矣〔四九〕。

    其不知體要者反此〔五〇〕:以恪勤爲公〔五一〕,以簿書爲尊〔五二〕,衒能矜名,親小勞,侵衆官,竊取六職百役之事〔五三〕,聽聽於府廷〔五四〕,而遺其大者遠者焉〔五五〕,所謂不通是道者也。

    猶梓人而不知繩墨之曲直、規矩之方圓、尋引之短長,姑奪衆工之斧斤刀鋸以佐其藝〔五六〕,又不能備其工〔五七〕,以至敗績用而無所成也,不亦謬歟〔五八〕? 或曰:“彼主爲室者〔五九〕,儻或發其私智〔六〇〕,牽制梓人之慮〔六一〕,奪其世守而道謀是用〔六二〕,雖不能成功,豈其罪耶?亦在任之而已〔六三〕。

    ”餘曰:不然。

    夫繩墨誠陳,規矩誠設〔六四〕,高者不可抑而下也,狹者不可張而廣也〔六五〕。

    由我則固,不由我則圮〔六六〕。

    彼將樂去固而就圮也〔六七〕,則卷其術,默其智,悠爾而去〔六八〕,不屈吾道,是誠良梓人耳〔六九〕。

    其或嗜其貨利,忍而不能捨也〔七〇〕,喪其制量,屈而不能守也〔七一〕,棟橈屋壞,則曰“非我罪也”,可乎哉〔七二〕,可乎哉? 餘謂梓人之道類於相,故書而藏之〔七三〕。

    梓人,蓋古之審曲面勢者〔七四〕,今謂之都料匠雲〔七五〕。

    餘所遇者,楊氏,潛其名〔七六〕。

     〔一〕貞元十四年(七九八)至永貞元年(八〇五)宗元爲官京師,文當作於此時。

    梓(zǐ)人:木工。

    《周禮·冬官·考工記》雲:“國有六職,百工與居一焉……梓人爲筍虡……梓人爲飲器……梓人爲侯。

    ”注:“百工司空事官之屬,於天地四時之職,亦處其一也。

    司空掌營城郭,建都邑,立社稷宗廟,造宮室車服器械。

    ”筍虡爲古代懸鐘磬樂器的支架。

    侯爲箭靶。

    則梓人乃攻竹木之工匠。

    亦稱梓匠。

    唐稱都料匠,見注〔七五〕。

    傳:古代文體。

    司馬遷《史記》有列傳七十篇,始創此體。

    明徐師曾《文體明辨序説》:“按字書雲:‘傳者,傳(chuán)也,紀載事迹以傳於後世也。

    ’自漢司馬遷作《史記》,創爲‘列傳’,以紀一人之始終,而後世史家卒莫能易。

    ”徐氏又曰:“嗣是山林裡巷,或有隱德而弗彰,或有細人而可法,則皆爲之作傳以傳其事,寓其意;而馳騁文墨者,間以滑稽之術雜焉,皆傳體也。

    ” 〔二〕裴封叔:名墐,字封叔,河東聞喜(今山西聞喜縣)人。

    貞元三年進士第,曾官京兆萬年縣令,元和十二年秋七月病卒。

    初娶盧氏,後娶柳氏,即宗元之姊。

    見《柳宗元集》卷九《唐故萬年令裴府君墓碣》。

    第:宅。

    光德裡:街名,在長安。

     〔三〕有梓二句:謂有木匠上門願租空屋居住。

    款:《玉篇》:“叩也。

    ”傭(yōng):租賃。

    隟(xì):當作“隙”。

    隙宇,空間不用暫無人居之室。

     〔四〕所職句:意謂他使用尺、圓規、墨綫等度量工具。

    職:掌,業。

    尋:古長度單位,八尺。

    《詩經·魯頌·閟宮》:“是斷是度,是尋是尺。

    ”箋:“八尺曰尋。

    ”引:古長度單位。

    《漢書·律曆志一》:“十丈爲引。

    ”規:圓規。

    矩(jǔ):直角尺。

    繩墨:以墨濡繩,木工用以定正直的工具。

    《尚書·説命上》:“惟木從繩則正。

    ” 〔五〕家不句:謂他家裏沒有刀斧等操作工具。

    居:儲存。

    章士釗雲:“居本商業用語,子厚好用此字,以示儲集,下文雲‘居天下之人,使安其業’,本篇即兩用之。

    ”(《柳文指要》上·卷十七)礱(lóng):磨。

    斲(zhuó):砍。

    礱斲之器,泛指木工工具,如刀鋸斧斤之類。

     〔六〕吾善四句:謂我善於度量材料,依照建築物之整體結構,如宅之高矮、方圓、短長等,選擇合適的木料,我指揮,由木工們操作。

    度材:度量木料的用途。

    制:規模。

    宜:適合。

    役:操作。

     〔七〕捨我二句:謂沒有我,工匠們就建不成一間房。

    捨:棄。

    就:成。

     〔八〕故食二句:謂所以爲官府建房,我所得酬金是木匠的三倍。

    食:以勞取酬。

    祿:酬金。

     〔九〕私家:私人家。

    直:同“值”,酬金。

    太半:大半。

    章士釗引唐順之語雲:“以言語代叙事。

    ”(《柳文指要》上·卷十七) 〔一〇〕闕(quē):缺少。

    足:指床腿。

    理:修理。

    沈德潛雲:“此文章波折,不爾,便傷直遂。

    ”(《唐宋八家文讀本》)章士釗引劉辰翁語雲:“是文章布景處,似真似謔。

    ”(《柳文指要》上·卷十七) 〔一一〕求:請。

    貪祿嗜貨:貪財好錢。

    以上記梓人自詡有能,卻不能修牀。

     〔一二〕京兆尹:唐設京兆府,掌管京城政事,其最高長官稱京兆尹。

    飾:整修。

    官署:衙門。

    過:訪問。

     〔一三〕委:放置。

    委羣材:積置許多木材,備料。

    會:集合。

    斤:斧子。

    環立:站一圈。

    嚮:向,面對。

    之:代指梓人。

     〔一四〕持引:拿着尺。

    杖:手杖。

    中處:站在中間。

     〔一五〕任:職也,指房屋某部分之功能。

    能:看木料長短、粗細、質地等。

    舉揮:舉而揮之。

    章士釗雲:“舉揮者,謂舉而揮之也,中應參一‘而’字,下雲‘顧而指曰鋸’,顧指之間,即參用‘而’。

    或將此語連下一彼字爲句,曰‘舉揮其杖曰斧彼’,下文‘顧而指曰鋸彼’亦然。

    ”(《柳文指要》上·卷十七)可備一説。

    斧:用斧砍,動詞。

    下文“鋸”用法同。

    奔而右:向右跑去。

    下文“趨而左”用法同。

     〔一六〕顧:看。

    俄而:頃刻。

    斤者:持斧之人。

    刀者:持刀之人。

    色:眼色,目光。

    俟:等待。

    莫:沒有誰,無定代詞。

     〔一七〕退之:叫他退下。

    愠(yùn):怒。

     〔一八〕宮:室,指建築物圖形。

    堵:牆。

    盈尺:滿一尺大小。

    曲盡:全表達出來。

    制:房屋的結構形制。

    無進退:無出入。

    按:梓人所畫猶今之藍圖。

     〔一九〕既成:竣工後。

    上棟:正梁。

    章士釗引王應麟語雲:“既成數語,極含蓄,爲下文張本,乃一篇精神命脈。

    ”(《柳文指要》) 〔二〇〕凡執句:謂所有工匠人之名均不寫。

     〔二一〕圜視:《漢書·賈誼傳》:“動一親戚,天下圜視而起。

    ”注:“言驚愕也。

    ”章士釗雲:“但從字面看來,謂其張目而視,或四面周察,兩解俱得。

    ”(《柳文指要》)術:技術。

    工:巧,善其事。

    大:高,高超。

    以上記梓人指揮現場施工的情景及竣工後自題其名的舉動。

     〔二二〕繼而:接着。

    體要:事物的整體與綱要。

     〔二三〕勞心:腦力勞動。

    勞力:體力勞動。

    役:役使,指使。

    役於人:被人驅使。

    《左傳·襄公九年》:“君子勞心,小人勞力。

    ”《孟子·滕文公》上:“勞心者治人,勞力者治於人。

    ”彼:他,指梓人。

    其:語氣助詞。

    下句用法同。

    沈德潛雲:“得此蕩漾之筆,入正意乃有力。

    ” 〔二四〕能者:有技藝的人。

    用:爲,作,從事具體工藝勞動。

    謀:出謀略。

    章士釗引唐順之語雲:“用三個歟字連聲贊美,方轉下去,如黃河之流,九折而入海,何等委曲?”(《柳文指要》) 〔二五〕是足句:謂這足以做爲輔佐天子、治理天下的法則。

    是:這。

    佐:輔佐。

    相:佐助。

    沈德潛雲:“落相道是主。

    ” 〔二六〕物莫句:章士釗雲:“物莫近乎此也:此謂梓人,謂足爲佐天子相天下法者,萬物之中,莫近於梓人,即物無比梓人更近者也。

    ”(《柳文指要》) 〔二七〕爲:治理。

    人:民。

    唐太宗名世民,唐人避諱,以“人”代“民”。

    本於人:以民爲本。

     〔二八〕執役:服役的人。

    徒隸:服賤役的人。

    鄉師:一鄉之長。

    《周禮·地官·鄉師》:“鄉師之職,各掌其所治鄉之教而聽其治。

    ”裡胥(xū):一裡之長。

    其上:鄉師、裡胥之上。

    士:官名。

    古時諸侯置上士、中士、下士之官,其位次於大夫。

    《禮記·王制》:“諸侯之上大夫卿、下大夫、上士、中士、下士凡五等。

    ”卿:官名。

    宗周及諸侯皆有卿,分上中下三級。

    公:輔佐國君掌軍政大權的最高官員。

    周有三公。

    《尚書·周官》:“立太師、太傅、太保,茲惟三公,論道經邦,燮理陰陽。

    ”漢唐均有三公。

     〔二九〕離:分。

    六職:指官府的治、教、禮、政、刑、事六種職務。

    《周禮·天官·小宰》:“以官府之六職,辨邦治。

    ”判:分。

    百役:各種具體工作。

     〔三〇〕薄:靠近。

    四海:古人以爲中國四周皆有海,古以中國爲海内。

    四海即邊境。

    《尚書·益稷》:“外薄四海,鹹建五長。

    ”方伯:遠離國都地區的諸侯之長。

    《禮記·王制》:“千裡之外設方伯。

    ”連率:即連帥。

    古十國之長名連帥。

    《禮記·王制》:“十國以爲連,連有帥。

    ” 〔三一〕守:太守,郡之最高長官。

    唐改郡爲州,改郡守爲州刺史。

    邑:城市。

    大城曰都,小城曰邑。

    宰:邑的最高長官,即後世之縣令。

    《通典》卷三十三《職官五·縣令》:“縣邑之長曰宰、曰尹、曰公、曰大夫。

    ”佐政:副手,副職。

     〔三二〕胥吏:官府中辦理公文的小吏。

    嗇(sè)夫:秦制,鄉置嗇夫,職聽訟收賦稅,漢晉劉宋皆因之,後廢。

    版尹:掌戶籍的辦事員。

    版:用以寫字的竹簡。

    此指戶籍。

    《周禮·天官·小宰》:“三曰,聽閭裡以版圖。

    ”注:“版,戶籍圖,地圖也。

    ”就役:辦事。

     〔三三〕猶衆句:就像衆木工各有技能,靠氣力養活自己一樣。

    伎:(jì季),技能。

     〔三四〕舉而加焉:章士釗雲:“謂舉其人而加於其職也,如人適宜爲上士,即舉而加於上士,餘類推。

    ”(《柳文指要》)指:指揮。

    使:遣派。

    條:條理。

    盈縮:增減。

     〔三五〕齊:整齊畫一。

     〔三六〕制:規格。

     〔三七〕居:聚。

    參見注〔五〕。

     〔三八〕視:看,考察。

    都:國都。

    野:指郊原。

    《詩經·邶風·燕燕》:“之子于歸,遠送于野。

    ”傳:“郊外曰野。

    ”國:諸侯封地。

    邇(ěr):近。

    細:小事。

    大:大事。

    究:推知。

     〔三九〕績於成:猶言事業的完成,工作完成。

    績,用。

     〔四〇〕進:舉也。

    由:任用。

    《左傳·襄公三十年》:“以晉國之多虞,不能由吾子,使吾子辱在泥塗久矣。

    ”德:感激。

    無所德:不感恩德。

     〔四一〕休:辭退,罷免。

     〔四二〕衒(xuàn):炫耀,誇耀。

    矜(jīn):自誇,矜誇。

     〔四三〕不親二句:謂宰相不宜親自做各類小事,不宜侵犯衆官之權。

    侵:犯,此謂代行他人職權。

     〔四四〕英才:才能出衆者。

    大經:國之大法。

    運:調動。

    伐:誇耀。

    藝:技藝。

     〔四五〕夫然句:謂這樣做才掌握了做宰相的道理,而全國也就治理好了。

    萬國:全中國。

    理:治理。

    唐高宗名治,唐人避諱,以“理”爲“治”。

     〔四六〕或:有的。

    殷:商朝的别名。

    盤庚遷都於殷(今河南安陽市西),改國號爲殷。

    曰:説。

    此作稱頌解。

    伊:伊尹,名摯,商湯的宰相。

    傅:傅説(yuè),商武丁的宰相。

    周:周公,名旦,文王之子,佐武王伐紂,又佐成王平管、蔡,定禮儀。

    召(shào):姬姓,名奭,周武王之臣。

    一説爲文王之子。

    因封於召,故稱召公或召伯。

    成王時,與周公分陝而治,“自陝而西,召公主之;自陝而東,周公主之。

    ”見《史記·燕召公世家》。

     〔四七〕其百句:意謂伊尹、傅説、周公、召公爲相時,百官勤勞奉職,而書中卻不記其事。

    執事:各部門專職人員。

    百執事:猶言百官。

    紀:同“記”。

     〔四八〕自名其功:自己稱自己的功勞,指署名。

     〔四九〕所謂句:謂爲相之道不過如此。

     〔五〇〕反此:與此相反。

     〔五一〕恪(kè):恭敬。

    勤:勤懇。

    公:《全唐文》作“功”,近是。

    沈德潛雲:“文用反勘,則正意益明。

    ” 〔五二〕以簿句:意謂埋頭於煩瑣事務中。

    簿:登記書寫用的冊簿。

    簿書,官府文書。

    尊:貴。

     〔五三〕竊(qiè)取:偷取,此指代屬官辦事。

     〔五四〕聽聽(yǐnyǐn)句:謂宰相和顔悅色地留連於各類官衙中。

    《説文》:“聽,笑貌。

    ”司馬相如《子虛賦》:“亡是公聽然而笑。

    ” 〔五五〕遺:忘。

    大者遠者:指宰相之責,如製定大政方針、選賢任能等。

     〔五六〕姑:暫且,姑且。

     〔五七〕又不句:謂又不能把事做完美。

    備:完備。

     〔五八〕以至二句:謂以至事業遭到失敗而無所成就,不也是錯誤嗎?績用:功用。

    以上借梓人之事論宰相之道,即不親小勞、不侵衆官而討論大經。

     〔五九〕主爲室者:主持建房的人,指房主。

     〔六〇〕儻或:儻若,假設之辭。

    發:發揮。

    私智:個人偏見。

     〔六一〕牽制句:謂約束梓人的思維,即不發揮梓人的智慧。

    牽制:約束,掣肘。

     〔六二〕奪其句:謂不準梓人施展祖傳技能,而聽信路人之言。

    世守:祖傳的技能。

    道謀:謂與路人相謀。

    諺稱“築室道謀,三年不成”。

    用:聽從。

    道謀是用,是“用道謀”的倒裝。

    《詩經·小雅·小旻》:“如彼築室於道謀,是用不潰於成。

    ”箋:“如當路築室,得人而與之謀所爲,路人之意不同,故不得遂成也。

    ” 〔六三〕雖不三句:謂雖然房不能建成,難道是梓人的罪過嗎?梓人不過聽之任之罷了。

    任之:聽之任之。

    或解爲在於任用他罷了。

     〔六四〕誠:實在,的確。

    陳:排列。

    設:擺出。

     〔六五〕高者二句:謂高屋不能壓低,窄屋不能拓寬。

     〔六六〕由:順,按照。

    我:指梓人。

    圮(pǐ):毀壞,坍塌。

     〔六七〕彼將句:如果屋主不要建堅固之室,而要建倒塌之室。

    彼:他,指“主爲室者”,即房主。

     〔六八〕則卷三句:謂那就收斂自己的技術,緘默自己的智慧,遠遠走開。

    沈德潛雲:“大臣之道如是。

    ” 〔六九〕不屈二句:謂決不放棄自己的原則,這才是好梓人。

    比喻爲相者,合則留,不合則去。

     〔七〇〕其或二句:謂假如梓人貪圖房主的錢財,違心地接受房主的錯誤決策,而不能離去。

     〔七一〕喪其二句:謂喪失了原則,委屈遷就,不能堅持。

    制量:猶言結構規格。

    屈:委屈。

    守:堅持(原則)。

     〔七二〕棟橈三句:謂屋樑彎曲房屋坍塌,卻説:“不是我的罪過”,行嗎?棟:屋樑。

    橈:彎曲。

    以上從假設房主破壞梓人的設計,推出梓人卷其術而去及忍而不能捨兩種可能對策,以喻宰相之道亦當合則留,不合則去。

     〔七三〕類於相:與宰相之道相似。

    書:寫此文。

     〔七四〕審曲面勢:《周禮·考工記》:“審曲面勢,以飭五材,以辨民器,謂之百工。

    ”謂審察五材曲直方圓形勢之宜以治之,及陰陽之面背是也。

     〔七五〕都料匠:即今土木建築師。

     〔七六〕潛其名:名潛。

    以上點明作意。

     【評箋】 宋·呂祖謙雲:“抑揚好,一節應一節。

    嚴序事實。

    ”(《古文關鍵》卷一) 宋·黃震雲:“喻爲相者之道也。

    文字宏闊。

    ”(《黃氏日鈔》卷六十) 宋·王應麟雲:“迂齋雲:‘《梓人傳》規模,從《呂氏春秋》來。

    ’愚按呂氏《分職篇》雲:‘使衆能,與衆賢,功名大立於世。

    不予佐之者,而予其主使之也。

    譬之若爲宮室,必任巧匠,奚故?曰:匠不巧,則宮室不善。

    夫國,重物也。

    其不善也,豈特宮室哉!巧匠爲宮室,爲圓必以規,爲方必以矩,爲平直必以準繩。

    功已就,不知規矩繩墨,而賞匠巧也。

    匠之宮室已成,不知巧匠,而皆曰善,此某君某王之宮室也。

    ’柳子立意本於此。

    ”(《困學紀聞》卷十) 明·茅坤雲:“次序摹寫,井井入構。

    ”(《唐宋八大家文鈔》卷四評柳文) 明·孫鑛雲:“落筆如煙雲,得《史》、《傳》、《國》之髓。

    ”(《山曉閣選唐大家柳柳州全集》卷二評柳文) 清·何焯雲:“李雲:上半截論梓人處,悉無漏義矣。

    便以末意作收場,而曰梓之道類乎相,豈非引而不發,意味深長,文之極佳者也。

    中間詳釋,翻成贅剩。

    ”(《義門讀書記》評語) 清·愛新覺羅弘曆雲:“儲欣曰:分明一篇大臣論,借梓人以發其端,由賓入主,非觸而長之之謂也。

    王弇州乃雲:形容梓人處已妙,隻一語結束可也,喋喋不已,複而易厭。

    如弇州言,是認煞公爲梓人立傳,而觸類相臣,失厥指矣。

    ”(《唐宋文醇》評語卷十一河東柳宗元文) 清·沈德潛雲:“結構精嚴,無一懈筆。

    ”又雲:“題用譬喻,不須説出正義,令人言外思之,此則六義中比體也。

    先喻後正,而透發正義處,層層迴抱前文,文各有體,不得以太盡議之。

    ”(《唐宋八家文讀本》卷九) 清·林雲銘雲:“相臣貴知大體,而大體在於識時務善用人。

    天下之治亂安危,即相臣所以爲能否,非可以才藝見長也。

    陳平不對決獄,丙吉不問殺人,雖未必能盡爲相之道,第其言頗得不親小勞不侵衆官之意,實千古相臣龜鑑。

    是篇借梓人能知體要,痛發其通於相業。

    段段回應,井井曲盡。

    文中亦有規矩繩墨者,史稱其善於文,且以是篇與《郭橐駝傳》,均贊其文之有理。

    洵不易之評矣。

    ”(《古文析義》二編卷六) 清·過珙雲:“寫梓人卻寫得體尊望重,運籌如意,便不是單寫梓人。

    入後通於相道之大,句句就梓人迴抱説,乃知寫梓人早已寫相,故特地寫個體尊望重也。

    ”(《古文評注》評語卷七) 清·儲欣雲:“胸中實實見得相道如此,借梓人發出,叙梓人處極重,後自省力。

    ”(《唐宋八大家類選》評語卷十三) 清·翁元圻雲:“楊升菴謂郭象《莊子》注曰:‘工人無爲於刻木,而有爲於運矩;主上無爲於親事,而有爲於用臣。

    ’柳子厚演之爲《梓人傳》,今按《傳》中實兼取其意。

    ”(《見翁注《困學紀聞》卷十) 清·孫琮雲:“此傳分兩大幅看:前半幅詳寫梓人,後半幅詳寫相道。

    前半幅寫梓人處處隱伏下半幅,後半幅寫相道處處回抱上半幅。

    末幅另發一議,補出不合則去,於義更無遺漏。

    ”(《山曉閣選唐大家柳柳州全集》評語卷四傳) 種樹郭橐駝傳〔一〕 郭橐駝,不知始何名〔二〕。

    病瘻,隆然伏行,有類橐駝者〔三〕,故鄉人號之“駝”。

    駝聞之曰:“甚善,名我固當〔四〕。

    ”因捨其名,亦自謂橐駝雲。

    其鄉曰豐樂鄉,在長安西。

    駝業種樹〔五〕,凡長安豪富人爲觀遊及賣果者〔六〕,皆争迎取養〔七〕。

    視駝所種樹,或移徙〔八〕,無不活,且碩茂早實以蕃〔九〕。

    他植者雖窺伺傚慕〔一〇〕,莫能如也〔一一〕。

     有問之,對曰:“橐駝非能使木壽且孳也〔一二〕,能順木之天,以緻其性焉爾〔一三〕。

    凡植木之性,其本欲舒〔一四〕,其培欲平〔一五〕,其土欲故〔一六〕,其築欲密〔一七〕。

    既然已,勿動勿慮,去不復顧〔一八〕。

    其蒔也若子,其置也若棄〔一九〕,則其天者全而其性得矣。

    故吾不害其長而已,非有能碩茂之也〔二〇〕;不抑耗其實而已,非有能早而蕃之也〔二一〕。

    他植者則不然,根拳而土易〔二二〕,其培之也,若不過焉則不及焉〔二三〕。

    苟有能反是者〔二四〕,則又愛之太恩,憂之太勤〔二五〕,旦視而暮撫,已去而復顧〔二六〕。

    甚者爪其膚以驗其生枯〔二七〕,搖其本以觀其疏密〔二八〕,而木之性日以離矣〔二九〕。

    雖曰愛之,其實害之;雖曰憂之,其實讎之〔三〇〕,故不我若也〔三一〕。

    吾又何能爲哉〔三二〕!” 問者曰:“以子之道,移之官理可乎〔三三〕?”駝曰:“我知種樹而已,理,非吾業也〔三四〕。

    然吾居鄉〔三五〕,見長人者好煩其令〔三六〕,若甚憐焉,而卒以禍〔三七〕。

    旦暮吏來而呼曰:‘官命促爾耕,勗爾植,督爾穫〔三八〕。

    早繅而緒,早織而縷,字而幼孩,遂而鷄豚〔三九〕。

    ’鳴鼓而聚之,擊木而召之〔四〇〕。

    吾小人輟飧饔以勞吏者,且不得暇〔四一〕,又何以蕃吾生而安吾性耶〔四二〕?故病且怠〔四三〕。

    若是,則與吾業者其亦有類乎〔四四〕?” 問者嘻曰:“不亦善夫〔四五〕!吾問養樹,得養人術〔四六〕。

    ”傳其事以爲官戒也〔四七〕。

     〔一〕長安作,參見《梓人傳》注〔一〕。

    橐(tuó):《説文》:“橐,囊也。

    ”駝:駱駝,其背肉峰如囊,故稱槖駝。

    一名馲駝。

    種樹人姓郭,因駝背,號橐駝。

     〔二〕不知句:意謂不知起初叫什麽名字。

     〔三〕瘻:《集韻》:“瘻,龍珠切,音慺,痀瘻曲脊。

    ”一本作“僂”。

    隆然:高起貌,此指背部。

    伏行:俯身彎腰走路。

    類:象。

     〔四〕名我:給我取這個名。

    固:的確。

    當:恰當,合適。

     〔五〕業:職業。

     〔六〕爲:從事,進行。

    觀(guàn)遊:觀賞,遊玩。

    章士釗雲:“‘觀’作去聲讀。

    宋陸遊務觀,名字相屬,義本此。

    ”(《柳文指要》上·卷十七) 〔七〕皆争句:謂争相迎請郭橐駝到家供養。

     〔八〕移徙:指移植的樹。

    徙:遷移。

     〔九〕且碩句:謂樹木高大茂盛,果實結得又早又多。

    碩:大。

    碩茂,樹高大茂盛。

    實:結果實。

    以:並且。

    蕃:多。

     〔一〇〕他植者:其他種樹的人。

    窺伺(kuīsì):暗中觀察。

    慕:試驗。

    《説文》:“慕,習也。

    ”傚慕,模仿試驗。

     〔一一〕莫:沒有誰。

    如:趕得上。

    以上寫郭橐駝名號由來及高超的種樹技藝。

     〔一二〕橐駝:自稱。

    壽:活得久。

    孳(zī):蕃殖。

    《聲類》:“孳,蕃也。

    ” 〔一三〕能順二句:謂我能順從樹的生長規律,盡量讓它按着自己的自然習性生長罷了。

    順:順從。

    天:生長規律。

    緻:盡。

    性:本性,習性。

    焉爾:罷了。

    按:“順天緻性”是全文本旨。

     〔一四〕植木:人工培植之樹。

    本:根。

    舒:舒展,放開。

     〔一五〕其培句:謂封土要與地面平,不高不低。

    培:填坑蓋根之土。

    《集韻》:“培,封也。

    ” 〔一六〕其土句:謂封土要用原來的舊土。

    故:舊。

     〔一七〕其築句:謂封土要搗實。

    築:搗封土。

     〔一八〕既然三句:意謂已經這樣做過以後,就離開不必管它。

    既:已經。

    然:如此,這樣。

    已:畢,結束。

    慮:惦念。

    去:離開。

    顧:回頭看。

     〔一九〕其蒔二句:謂栽樹時像撫育孩子那樣精心,栽好後不管它,就如拋棄一樣。

    蒔(shì):移栽植物。

    《説文》:“蒔,更别穜。

    ”置:放着,擺着。

     〔二〇〕全:保全。

    得:事得其宜。

    長(zhǎng):生長。

    害其長,妨害它生長。

    能:本領。

    碩茂之:使樹高大茂盛。

     〔二一〕不抑二句:謂我不過是不抑制損耗它的果實罷了,並非有本領讓它的果實結得又早又多。

     〔二二〕根拳句:謂坑小根不得伸展,又不用舊土。

    拳:拳曲。

    易:更換。

     〔二三〕其培二句:謂封土不是超過了地平,就是達不到地平。

     〔二四〕苟有句:謂即使有人能不出這類偏差。

    苟:即使。

    反是:相反於此的。

     〔二五〕恩:撫育篤厚。

    勤:多。

    沈德潛雲:“上一層已撇開,注意在此。

    ”(《唐宋八家文讀本》) 〔二六〕撫:摸。

    復顧:又回來看視。

     〔二七〕甚者:更嚴重的。

    爪:掐。

    膚:指樹皮。

    生:活着。

    枯:死了。

     〔二八〕本:幹。

    疏:土搗得鬆。

    密:土搗得實。

     〔二九〕日:一天天。

    離:分開,言被摧殘。

     〔三〇〕讎(chóu):通“仇”。

    讎之,恨它,把它當仇人。

    章士釗雲:“愛害韻,憂讎韻,子厚行文,好羼韻語。

    ”(《柳文指要》) 〔三一〕若:如。

    不我若,“不若我”的倒置句。

     〔三二〕吾又句:謂我又能做什麽呢?以上郭橐駝自述種樹秘訣是順天緻性,即順其自然,過分愛護反而傷害樹木。

     〔三三〕以子二句:謂把你種樹的規律運用到做官治民方面可以嗎?理:治。

     〔三四〕理二句:謂治理百姓不是我的職業。

     〔三五〕鄉:即上文“豐樂鄉”。

     〔三六〕見長句:謂常見做官的好頻繁施令。

    長(zhǎng)人者:統治人民的人。

    《國語·周語》:“古之長民者。

    ”爲其所本。

    唐太宗名世民,唐人避諱,以“人”爲“民”。

    好(hào):喜好。

    煩:多。

    煩其令,使其令煩。

     〔三七〕若:好像。

    憐:愛,愛護。

    《爾雅·釋詁》:“憐,愛也。

    ”卒:結果。

    禍:災難。

     〔三八〕吏:縣吏。

    爾:你們。

    勗(xù):勉勵。

    穫:收割。

     〔三九〕早繅四句:謂早些抽好你們的絲,紡好你們的綫,撫育好你們的孩子,繁殖好你們的鷄豬。

    繅(sāo):抽繭出絲。

    而:汝,爾,你們。

    下三句同。

    緒:絲頭。

    《説文》:“緒,絲耑也。

    ”段注:“耑者,草木初生之題也。

    因爲凡首之稱。

    抽絲者得緒而可引。

    ”縷(lǚ):蠶絲。

    字:撫養。

    《左傳·昭公十一年》:“其僚無子,使字敬叔。

    ”注:“字,養也。

    ”遂:物生出曰遂。

    此指繁殖。

    豚(tún):小豬。

     〔四〇〕鳴鼓:敲鼓。

    之:指鄉民,下句同。

    木:木鐸,以木爲舌的鈴。

    古宣布政教法令的官員,巡行振鳴木鐸以引人注意。

    《周禮·天官》:“徇以木鐸。

    ”注:“古者將有新令,必奮木鐸以警衆,使明聽也。

    ” 〔四一〕吾小二句:謂我們小民自己不吃飯去應酬縣吏,時間也不夠。

    吾小人:我們小民百姓。

    輟(chuò):停止。

    飧(sūn):晚飯。

    饔(yōng):早飯。

    勞:接待。

     〔四二〕又何句:謂又怎能發展生産,安居樂業呢?沈德潛雲:“正喻相應。

    ” 〔四三〕病:困苦。

    《廣雅·釋詁》:“病,苦也。

    ”怠(dài):疲倦。

     〔四四〕若是二句:謂如此説來,爲官治民與我種樹也有相似之處吧?以上郭橐駝認爲地方官頻繁施令,緻使百姓病且怠,猶如種樹不懂順天緻性。

     〔四五〕嘻:贊嘆聲。

    夫:乎,嗎。

     〔四六〕吾問二句:謂我問種樹法,卻學到治民法。

     〔四七〕傳其句:謂把他的言行記下來,以爲當官人鑒戒。

    傳(zhuàn):作傳。

    以上點明作意。

     【評箋】 宋·王應麟雲:“《淮南子》曰:‘春貸秋賦,民皆欣;春賦秋貸,衆皆怨。

    得失同,喜怒爲别,其時異也。

    爲魚德者,非挈而入淵;爲蝯賜者,非負而緣木,縱之其所而已。

    ’亦見《文子》。

    此柳子《種樹傳》之意。

    ”(《困學紀聞》卷十) 明·茅坤雲:“守官者當深體此文。

    ”(《唐宋八大家文鈔》卷四評柳文) 清·林雲銘雲:“政在養民,即唐虞不廢戒董,以其能緻民之性也。

    後世具文煩擾,而民始病。

    郭橐駝種樹之道,若移之官理,便是居敬行簡一副學問。

    即充而至於舜之無爲,禹之無事,不越此理。

    然前段以種植之善不善分提,後段單論官理之不善,但雲以他植者爲戒,不説以橐駝爲法,蓋知古治,必不易復省一事,斯民間省一擾,即漢詔以不煩爲循吏之意,非謂居官可以不事事也。

    細玩方知其妙。

    ”(《古文析義》二編卷六) 清·張伯行雲:“子厚之體物精矣,取喻當矣。

    爲官者當與民休息,而不可生事以擾民。

    雖曰愛之,適以害之,是可歎也。

    然所謂煩其令者,雖未得愛之之道,而猶有愛之之心焉。

    若今日之吏,來於鄉者,追呼耳,掊克耳,是直操斧斤以入山林也,豈特爪其根搖其本已哉!噫!”(《唐宋八大家文鈔》評語卷四) 清·吳楚材、吳調侯雲:“前寫橐駝種樹之法,瑣瑣述來,涉筆成趣,純是上聖至理,不得看爲山家種樹方。

    末入官理一段,發出絶大議論,以規諷世道。

    守官者當深體此文。

    ”《古文觀止》評語卷九) 清·過珙雲:“借種樹以喻居官,與《捕蛇者説》同一機軸。

    ”(《古文評注》評語卷七) 清·孫琮雲:“前幅寫橐駝命名,寫橐駝種樹,寫橐駝與人問答種樹之法,瑣瑣述來,純是涉筆成趣。

    讀至後幅,陡然接入官理一段,變成絶大議論。

    於是讀者讀其前文,竟是一篇遊戲小文章,讀其後文,又是一篇治人大文章。

    前後改觀。

    咄咄奇事。

    ”(《山曉閣選唐大家柳柳州全集》評語卷四傳) 清·蔡鑄雲:“牧民當順民性,亦猶種樹不可拂其性也。

    借言規諷,可以垂世。

    ”(《蔡氏古文評注補正全集》評語卷七) 清·儲欣雲:“順木之天,其義類甚廣,爲學養生,無不可通。

    然柳氏自爲長人者而發,後世併促耕督穫之呼,亦無暇及矣。

    叫囂隳突,鷄犬不寧,如《捕蛇説》所雲,則無間日夜也,悲夫!”(《唐宋八大家類選》)評語卷十三) 清·朱宗洛雲:“嘗謂大家之文,多以意勝,而意又要善達。

    其所以善達者,非以詞糾纏敷衍之謂也,蓋一意耳。

    或借粗以明精,如此文養樹雲雲是也;或借彼以證此,如以他植者來陪襯是也;或去淺以取深,如‘既然已’,及‘苟有能反是者’,與‘甚者’雲雲是也;或反與正相足,如中間‘其本欲舒’數句正説,而後又用‘非有能’以反繳是也。

    至一段中或先用虛提,中用申説,後用實繳;或兩段中一正一反一逆一順錯間相生;或一篇中前虛後實,前賓後主,前提後應。

    變化伸縮,則題意自達,不犯糾纏敷衍之病矣。

    處處樸老簡峭,在《柳集》中,應推爲第一。

    ”(《古文一隅》評語卷中) 清·沈德潛雲:“此爲勤民而不得其道者言,若戕虐其民,如根拳土易一流,固不待言也。

    柳子主意,蓋在蓋公治齊一邊。

    ”又雲:“古人立私傳,每於史法不得立傳,而其人不可埋沒者,别立傳以表章之,若柳子郭橐駝、宋清諸傳,同於莊生之寓言,無庸例視。

    ”(《唐宋八家文讀本》卷九) 以上長安文。

     永州龍興寺息壤記〔一〕 永州龍興寺東北陬有堂〔二〕,堂之地隆然負塼甓而起者,廣四步,高一尺五寸〔三〕。

    始之爲堂也,夷之而又高〔四〕。

    凡持鍤者盡死〔五〕。

    永州居楚越間,其人鬼且禨〔六〕。

    由是寺之人皆神之,人莫敢夷〔七〕。

     《史記·天官書》及《漢·志》有地長之占〔八〕,而亡其説〔九〕。

    甘茂盟息壤〔一〇〕,蓋其地有是類也〔一一〕。

    昔之異書,有記洪水滔天,鯀竊帝之息壤以湮洪水,帝乃令祝融殺鯀於羽郊〔一二〕。

    其言不經見〔一三〕。

    今是土也,夷之者不幸而死,豈帝之所愛耶〔一四〕?南方多疫,勞者先死〔一五〕,則彼持鍤者,其死於勞且疫也。

    土烏能神〔一六〕? 餘恐學者之至於斯〔一七〕,徵是言,而唯異書之信〔一八〕,故記於堂上〔一九〕。

     〔一〕永貞元年(八〇五)九月,永貞革新失敗,宗元自禮部員外郞貶爲邵州刺史,未至,再貶永州司馬。

    《舊唐書·憲宗紀》永貞元年九月:“己卯,京西神策行營節度行軍司馬韓泰貶撫州刺史,司封郎中韓曄貶池州刺史,禮部員外郎柳宗元貶邵州刺史,屯田員外郎劉禹錫貶連州刺史:坐交王叔文也。

    (十一月)壬申,貶正議大夫、中書侍郞、平章事韋執誼爲崖州司馬。

    己卯,再貶撫州刺史韓泰爲虔州司馬,河中少尹陳諫台州司馬,邵州刺史柳宗元爲永州司馬,連州刺史劉禹錫郎州司馬,池州刺史韓曄饒州司馬,和州刺史淩準連州司馬,嶽州刺史程異郴州司馬,皆坐交王叔文。

    初貶刺史,物議罪之,故再加貶竄。

    ”即所謂“八司馬”事件。

    永州:唐永州屬江南道,治零陵縣,即今湖南省零陵縣。

    龍興寺:在永州零陵縣。

    宗元貶永州,首居龍興寺,次居愚溪。

    其《永州龍興寺西軒記》雲:“永貞年,餘名在黨人,不容於尚書省。

    出爲邵州,道貶永州司馬。

    至則無以爲居,居龍興寺西序之下。

    ”則本文當至永州未久即元和初年作。

    宗元《永州龍興寺東丘記》雲:“龍興,永之佳寺也。

    登高殿可以望南極,闢大門可以瞰湘流。

    ”息壤:能生長的土。

     〔二〕陬(zōu):角落。

    堂:佛堂。

     〔三〕堂之三句:謂佛堂内塼地被土頂起一片,直徑四步,高一尺五寸。

    隆然:凸起貌。

    負:頂起。

    甓(pì):塼。

    步:古度量單位,其制各代不一。

    《禮記·王制》:“古者以周尺八尺爲步,今以周尺六尺四寸爲步。

    ”《史記·秦始皇本紀》:“數以六爲紀。

    六尺爲步。

    ”又舊時營造尺以五尺爲步。

    尺的長度歷代不一,大緻時代愈後,尺愈長。

     〔四〕始之二句:謂當初建佛堂時,已將凸起地面剷平鋪塼,後土竟又長高,頂起地面上塼。

    夷:削平。

     〔五〕凡持句:謂所有拿鐵鍬剷過土的工匠都死了。

    鍤(chā):鐵鍬。

     〔六〕楚:今湖南、湖北古屬楚地。

    越:古稱五嶺之南少數民族爲百越或百粵。

    楚越間,永州南與嶺南道桂州以越城嶠(又稱全義嶺,即五嶺最西嶺)爲界,故稱居楚越間。

    宗元《與李翰林建書》雲:“永州於楚爲最南,狀與越相類。

    ”鬼且禨(jī):迷信鬼神。

    鬼:信鬼。

    禨:祅祥。

    《列子·說符》:“楚人鬼而越人禨。

    ”注:“信鬼神與禨祥。

    ” 〔七〕由是:從此。

    神之:把它(土)視爲神物。

    人莫:沒有哪個人。

     〔八〕有:記載。

    長(zhǎng):升高。

    占:徵兆。

    《史記·天官書》雲:“水澹澤竭,地長見象。

    ”意爲水波動蕩,沼澤乾涸,是土地長高時呈現之徵象。

    《漢書·天文志》雲:“水澹地長,澤竭見象。

    ”意謂水面動蕩,地面長高,是沼澤乾涸之徵象。

    二書所記似有出入,章士釗雲:“中間所用字,位置有顛倒。

    或謂漢書次第是,吾意不然,蓋此八字,共説地長之象,以水澹澤竭爲其總因,若以漢書所列,則地因水澹而長,澤竭又見何象乎?”(《柳文指要》上·卷二十八) 〔九〕亡(wú):同“無”。

    説:説明。

     〔一〇〕甘茂:人名,戰國秦武公之左丞相。

    盟,盟誓。

    息壤:秦地名。

    《史記·甘茂傳》載:“王迎甘茂於息壤。

    ”《索隱》:“《山海經》啓筮雲:昔伯鮌竊帝之息壤,以堙洪水。

    ”或是此也。

    宗元引此典,意在説明古有息壤地名。

     〔一一〕蓋其句:謂大概那地方的土與龍興寺的土相類似,也能生長。

    蓋:大概,猜度之詞。

     〔一二〕異書:記載異事之書,指《山海經》。

    鯀(gǔn):夏禹之父。

    帝:天帝。

    湮(yīn):同“堙”,填塞。

    《説文》作“垔”:“塞也,《尚書》曰:‘鯀垔洪水。

    ’”祝融:傳説中的火神。

    羽郊:羽山。

    鯀竊息壤而被殺事詳見《山海經·海内經》。

     〔一三〕不經見:謂不見於儒家經典著作。

    即經書無載。

     〔一四〕豈帝句:謂難道是天帝所愛之息壤被剷平,故懲罰剷息壤者嗎? 〔一五〕南方二句:謂南方多瘟疫流行,勞累過度者染病先死。

     〔一六〕烏:何。

    以上引史書論證息壤古來有之,而異書荒誕之載不足信。

    今者剷息壤人身亡,乃因勞累及瘟疫,並非土能顯神。

     〔一七〕學者:學問者。

    至於斯:來到此地。

     〔一八〕徵是二句:謂聽了僧人這番話,就隻相信異書所記天帝息壤之事。

    徵:證,驗。

    唯異書之信:“唯信異書”的倒置。

     〔一九〕堂上:佛堂壁上。

    以上點明作意,恐以訛傳訛,作文以正視聽。

     【評箋】 清·常安雲:“本不信有此理,妙隻以淡宕出之。

    ”(《古文披金》卷十四柳文) 清·孫琮雲:“事本野流荒僻,子厚欲闢異説,而不以繁言置辨,齦齦斷斷,自足垂示後人。

    子厚嘗言:‘吾爲文章,未嘗敢以輕心掉之,懼其剽而不留也。

    ’於此等文驗之。

    ”(《山曉閣選唐大家柳柳州全集》評語卷三記) 章士釗雲:“南方多疫,勞者先死,此憑借物理以爲斷,何等斬截?而息壤不經之説,遠起於子厚之先,而遂流衍於子厚之後,後來文士所見,都遜子厚一籌,即此已見子厚之偉大。

    ”(《柳文指要》上·卷二十八) 始得西山宴遊記〔一〕 自餘爲僇人〔二〕,居是州,恒惴慄〔三〕。

    其隟也〔四〕,則施施而行,漫漫而遊〔五〕。

    日與其徒上高山〔六〕,入深林,窮迴谿〔七〕,幽泉怪石,無遠不到。

    到則披草而坐〔八〕,傾壺而醉。

    醉則更相枕以卧〔九〕。

    卧而夢,意有所極,夢亦同趣〔一〇〕。

    覺而起〔一一〕,起而歸。

    以爲凡是州之山水有異態者〔一二〕,皆我有也,而未始知西山之怪特〔一三〕。

     今年九月二十八日〔一四〕,因坐法華西亭〔一五〕,望西山,始指異之〔一六〕。

    遂命僕人過湘江〔一七〕,緣染溪〔一八〕,斫榛莽,焚茅茷〔一九〕,窮山之高而止〔二〇〕。

    攀援而登,箕踞而遨〔二一〕,則凡數州之土壤,皆在袵席之下〔二二〕。

    其高下之勢,岈然窪然〔二三〕,若垤若穴〔二四〕,尺寸千裡〔二五〕。

    攢蹙累積〔二六〕,莫得遯隱〔二七〕。

    縈青繚白〔二八〕,外與天際〔二九〕,四望如一。

    然後知是山之特立,不與培塿爲類〔三〇〕。

    悠悠乎與顥氣俱,而莫得其涯〔三一〕,洋洋乎與造物者遊,而不知其所窮〔三二〕。

    引觴滿酌,頽然就醉〔三三〕,不知日之入。

    蒼然暮色〔三四〕,自遠而至,至無所見,而猶不欲歸〔三五〕。

    心凝形釋〔三六〕,與萬化冥合〔三七〕。

    然後知吾嚮之未始遊,遊於是乎始〔三八〕,故爲之文以志〔三九〕。

    是歲,元和四年也〔四〇〕。

     〔一〕文末叙明元和四年(八〇九)作於永州。

    本文及以下七篇山水遊記均作於永州,後人合稱爲永州八記,本篇領起其餘諸篇。

    始得:剛發現。

    西山:在永州城西。

    《輿地紀勝》卷五十六:“永州……西山在零陵縣西五裡,柳子厚愛其勝境,有《西山宴遊記》。

    ”《大清一統志》卷二八二永州府:“西山在零陵縣西……自朝陽巖起,至黃茅嶺北,長亘數裡,皆西山也。

    ”宴遊:遊覽並宴飲,即今之旅遊野餐。

     〔二〕僇(lù):辱。

    僇人:受辱之人,指罪人。

     〔三〕是:這。

    是州:指永州。

    恒:始終。

    惴慄(zhuìlì):恐懼戰栗。

     〔四〕隟:同“隙”,指閑時。

     〔五〕則施二句:謂緩步放情遊覽。

    施施(yíyí):緩行貌。

    漫漫:任意不拘貌。

     〔六〕徒:朋輩。

     〔七〕窮:走盡。

    迴谿:紆迴曲折的溪水。

    至“無遠不到”,極力寫前此之遊,以托起篇末“然後知吾嚮之未始遊”句。

     〔八〕披:分開。

     〔九〕更相:交相,互相。

     〔一〇〕意:思想。

    極:到。

    《爾雅·釋詁》:“極,至也。

    ”趣:通“趨”,向:往。

     〔一一〕覺(jué):醒。

     〔一二〕異態:奇景。

    態,一本作“勝”。

    有:佔有,指遊過。

     〔一三〕未始知:猶言尚未知。

    怪特:奇異特别。

    以上極言在永州平日遊覽之勝,以反跌下文。

    此段語意確是第一篇發端,移置他篇不得。

     〔一四〕今年:元和四年,見注〔四〇〕。

     〔一五〕法華西亭:法華寺,在永州零陵城内。

    西亭,在法華寺内,宗元所建。

    宗元《永州法華寺新作西亭記》雲:“法華寺居永州,地最高。

    ……餘時謫爲州司馬,官外乎常員,而心得無事,乃取官之祿秩,以爲其亭。

    ”又《構法華寺西亭》詩雲:“步登最高寺,蕭散任疏頑。

    ”因寺及亭高,故有下句望西山。

     〔一六〕始指異之:開始指點西山,見其奇異。

    此句點始字。

     〔一七〕湘江:水名,又名湘水。

    《元和郡縣圖志》卷二十九江南道永州:“零陵縣……湘水經州西十餘裡。

    ”因江在州西,故往西山必過江。

    一本僕下無人字。

     〔一八〕緣:順,沿。

    染溪:又名冉溪,宗元後築室於此,改名愚溪。

    其《愚溪詩序》雲:“灌水之陽,有溪焉,東流入於瀟水。

    或曰:冉氏嘗居也,故姓是溪爲冉溪。

    或曰:可以染也,名之以其能,故謂之染溪。

    ”參見《愚溪詩序》。

     〔一九〕斫(zhuó):砍。

    榛(zhēn):樹名,叢生灌木。

    莽:草叢。

    茷(fá):《説文》:“茷,草葉多。

    ”茅茷,茅草。

     〔二〇〕窮山句:謂登上最高峰。

     〔二一〕箕踞(jījù):兩腿叉開,席地而坐。

    《漢書·張耳傳》:“高祖箕踞駡詈。

    ”注:“箕踞者,謂申(伸)兩腳,其形如箕。

    ”遨:遊。

    《漢書·景十三王傳》:“無令出敖。

    ”注:“敖,謂遊戲也。

    ”“遨”與“敖”通。

     〔二二〕數州:指永州鄰州,如西邵州,東南道州,東北衡州。

    袵(rèn)席:卧席。

    《禮記·曲禮上》:“請袵何趾。

    ”注:“袵,卧席也。

    ”自此以下,形容西山之高峻,純從對面著筆,構意絶妙,撰語絶工。

     〔二三〕高下:高低。

    岈(xiā)然:山深貌。

    《玉篇》:“岈,火加切,岈,山深之狀。

    ”窪(wā)然:深陷貌。

    《説文》:“窪,深池也。

    ” 〔二四〕若垤句:謂高的如蟻封,低的如蟻穴。

    垤(dié):蟻穴外的土。

    《説文》:“垤,蟻封也。

    ” 〔二五〕尺寸句:謂眼見僅有尺寸之短,實則有千裡之遠。

     〔二六〕攢蹙(cuáncù):密集。

     〔二七〕莫得句:謂山川城邑盡收眼底。

    莫:沒有哪個。

    遯(dùn):《説文》:“遯,逃也。

    ”隱:藏。

     〔二八〕縈青句:謂緑樹白水錯雜纏繞。

    縈:繞。

    青:指地面草樹之色。

    白:水澤之色。

     〔二九〕外與句:延伸開去與天相連。

    際:接。

    《淮南子·精神篇》:“與道爲際。

    ”注:“際,合也。

    ” 〔三〇〕特立:出衆卓立。

    培塿(lǒu):小丘。

    《方言》十三:“冢,秦晉之間或謂之培,自關而東謂之丘,小者謂之塿。

    ”注:“培塿亦堆高之貌。

    ”類:同類,相同。

    沈德潛曰:“始得神理。

    ”(《唐宋八家文讀本》) 〔三一〕悠悠:眇遠貌。

    顥(hào)氣:大氣。

    《廣韻》:“顥,天邊氣。

    ”涯:邊際。

     〔三二〕洋洋:廣大。

    造物者:創造萬物者,即大自然。

    所窮:終點。

    此二句及上二句意謂登山四望,心馳神往,融合於天地自然之中。

     〔三三〕引觴二句:謂取杯斟滿酒,開懷暢飲,以至酒醉。

    引:取,拿。

    觴(shāng):酒盃。

    頽然:下墜貌,此指醉而不能自持。

    沈德潛雲:“此寫宴遊。

    ” 〔三四〕蒼然:深暗貌。

     〔三五〕猶:還。

     〔三六〕心凝:精神與自然凝合。

    形釋:軀體消散,不復存在。

    此句及下句極寫身心恬適,泯忘物我,與自然萬物融爲一體的境界。

     〔三七〕萬化:萬物。

    冥合:暗合。

     〔三八〕然後二句:這才知道我從前並未開始遊覽,真正的遊覽從這裏開始。

    嚮(xiàng):從前。

    於是:從這裏。

    沈德潛雲:“正收始字。

    ” 〔三九〕志:記。

     〔四〇〕是歲:今年。

    元和:唐憲宗李純年號。

    元和四年爲公元八〇九年。

    以上記發現、攀登西山的過程,及宴遊的樂趣。

     【評箋】 清·何焯雲:“中多寓言,不惟寫物之工。

    ‘傾壺而醉’,帶出宴字。

    ‘而未始知西山之怪特’,反呼‘始’字。

    ‘始指異之’,虛領‘始’字。

    ‘蒼然暮色’三句,‘始’字神理。

    ‘心凝神釋’,破惴慄。

    ‘然後知向之未始遊’二句,上句帶前一段,下句正收‘始’字。

    李雲:羈憂中一得曠豁,寫得情景俱真。

    ”(《義門讀書記》評語) 清·孫琮雲:“篇中欲寫今日始見西山,先寫昔日未見西山;欲寫昔日未見西山,先寫昔日得見諸山。

    蓋昔日未見西山,而今日始見,則固大快也;昔日見盡諸山,獨不見西山,則今日得見,更爲大快也。

    中寫西山之高,已是置身霄漢;後寫得遊之樂,又是極意賞心。

    ”(《山曉閣選唐大家柳柳州全集》評語卷三記) 清·儲欣雲:“前後將‘始得’二字,極力翻剔。

    蓋不爾,則爲‘西山宴遊’五字題也。

    可見作文,凡題中虛處,必不可輕易放過。

    其筆力矯拔,故是河東本來能事。

    ”(《唐宋八大家類選》) 清·沈德潛雲:“從始得字着意,人皆知之。

    蒼勁秀削,一歸元化,人巧既盡,渾然天工矣。

    此篇領起後諸小記。

    ”(《唐宋八家文讀本》卷九) 鈷鉧潭記〔一〕 鈷鉧潭在西山西〔二〕,其始蓋冉水自南奔注〔三〕,抵山石〔四〕,屈折東流,其顛委勢峻〔五〕,盪擊益暴〔六〕,齧其涯,故旁廣而中深〔七〕,畢至石乃止〔八〕。

    流沫成輪〔九〕,然後徐行〔一〇〕,其清而平者且十畝餘,有樹環焉,有泉懸焉。

     其上有居者〔一一〕,以予之亟遊也,一旦款門來告曰〔一二〕:“不勝官租私券之委積〔一三〕,既芟山而更居〔一四〕,願以潭上田貿財以緩禍〔一五〕。

    ”予樂而如其言〔一六〕。

    則崇其臺,延其檻〔一七〕,行其泉於高者而墜之潭〔一八〕,有聲然〔一九〕。

    尤與中秋觀月爲宜〔二〇〕,於以見天之高,氣之迥〔二一〕。

     孰使予樂居夷而忘故土者,非茲潭也歟〔二二〕? 〔一〕本篇爲“永州八記”第二篇。

    元和四年(八〇九)作。

    《鈷鉧潭西小丘記》雲:“得西山後八日,尋山口西北道二百步,又得鈷鉧潭。

    潭西……有丘焉。

    ”以是知本篇及《鈷鉧潭西小丘記》均作於始得西山之年即元和四年。

    鈷鉧(gǔmǔ):熨鬥,潭形如熨鬥,故以名之。

    宋範成大曾親歷永州,訪其舊迹,雲:“渡瀟水即至愚溪,溪上愚亭,以祠子厚。

    路旁有鈷鉧潭。

    鈷鉧,熨鬥也。

    潭狀似之。

    ”(《驂鸞録》) 〔二〕西山:即上文《始得西山宴遊記》之西山。

    劈頭即點清鈷鉧潭跟上篇西山來。

     〔三〕冉水:又名冉溪、染溪,宗元後改其名爲愚溪。

    奔注:急速流下。

     〔四〕抵:觸。

     〔五〕其顛句:謂水頭與潭高低差别大,水勢陡峭。

    顛:水頭。

    委:水末。

    《禮記·學記》:“三王之祭川也,皆先河而後海,或原也,或委也,此之謂務本。

    ”注:“委,流所聚也。

    ”勢峻:水勢險峻。

     〔六〕盪擊:指水在潭中震盪衝擊。

    益暴:更加猛烈。

     〔七〕齧其二句:謂水流衝刷潭岸,所以潭兩岸寬闊而中間深。

    齧(niè):咬。

    《説文》:“齧,噬也。

    ”此作衝擊、衝刷解。

    涯:岸邊。

     〔八〕畢:最終。

    至石:碰到四周的石頭。

    指岸邊泥土衝刷殫盡,唯剩石岸。

    清何焯雲:“‘盪擊益暴’四句,寫出鈷鉧形貌。

    ”(《義門讀書記》評語)沈德潛雲:“句句剪削,乃有此詣,稍一放筆,便平常語矣。

    ”(《唐宋八家文讀本》) 〔九〕沫:水上浮漚,細小者爲沫,大者爲泡。

    流沫,旋轉流動的泡沫。

    輪:成圓形如車輪狀。

     〔一〇〕徐行:緩慢流動。

    二句描寫工細。

     〔一一〕居者:住戶。

     〔一二〕以:因爲。

    亟(qì):屢次。

    旦:早晨。

    款:《玉篇》:“叩也。

    ”款門,敲門。

    告:謁請。

     〔一三〕不勝句:謂拖欠的官租和私債極多,無力償還。

    不勝(shēng):忍受不了。

    券:借債的憑據。

    私券,借私人之款項。

    委積:堆積。

     〔一四〕既:已經。

    芟(shān):《説文》:“芟,刈草也。

    ”芟山,在山上開荒。

    更居:變更住處,搬家。

     〔一五〕願以句:意謂願賣潭上耕地還債。

    貿:《説文》:“易財也。

    ”貿財,賣地得錢。

    緩:解除。

    禍:指官租私債。

     〔一六〕予樂句:我很樂意買潭,并按價付款。

    如:按照……去做。

     〔一七〕則崇二句:謂建了高臺,修了長欄杆。

    崇:高。

    延:長。

     〔一八〕行其句:謂把泉水引向高處,然後傾落到潭中。

    行其泉:引泉水。

    即上文“有泉懸焉”之泉。

     〔一九〕(cōng)然:泉落潭中水激之聲。

    《説文》:“小水入大水曰。

    ”此狀小水入大水之聲。

     〔二〇〕宜:合適。

     〔二一〕氣:天空。

    迥(jiǒng):遼闊。

     〔二二〕孰:誰,甚麽。

    夷:古代對邊遠少數民族之貶稱,此指永州。

    茲:此。

    歟(yú):嗎。

    以上記自己對潭的增修及賞翫。

    結處極幽冷之趣,而情甚悽楚。

     【評箋】 清·盧元昌雲:“潭字起,潭字住,瀟然灑然。

    ”(《山曉閣選唐大家柳柳州全集》卷一評柳文) 清·孫琮雲:“此篇第一段叙潭中形勢,第二段叙土人鬻潭,第三段叙已增置。

    妙在第一段中,寫‘清而平者且十畝’一句,便是描畫盡此潭。

    第三段中,寫‘中秋觀月爲宜’,便是賞鑑盡此潭。

    結處樂居而忘故土一句,便是知己盡此潭。

    筆墨之間,聲情倍至。

    ”(《山曉閣選唐大家柳柳州全集》評語卷三記) 清·林紓雲:“鈷鉧潭,非勝概也。

    但狀冉水之奔迅,工夫全在一‘抵’字,以下水勢均從‘抵’字生出。

    水勢南來,山石當水之去路,水不能直瀉,自轉而東流,故成爲屈折。

    ‘屈’字,即抵不過山石,因折而他逝耳。

    其所以‘盪擊’之故,又在‘顛委勢峻’四字。

    ‘勢’者,水勢也;‘委者’,潭勢也。

    水至而下迸,注其全力,趨涯如矢,中深者爲水力所射。

    ‘涯’字似土石雜半,故土盡至石。

    著一‘畢’字,即年久水齧石成深槽,至此不能更深,乃反而徐行也。

    其下買潭上田而觀水,語亦修潔;惟曲寫潭狀,煞費無數力量,非柳州不復能道。

    ”(《韓柳文研究法·柳文研究法》) 章士釗雲:“李日華《六硯齋筆記》雲:‘黃茅小景,唐子畏畫太湖濱幽奇處,名曰熨鬥柄,昔柳子厚作《遊鈷鉧潭記》,鈷鉧者,即熨鬥柄也。

    ’……潭而有泉懸焉,則柄顯矣。

    熨鬥柄一詞,似是鈷鉧確詁,不知竹懶何所本?”(《柳文指要》上·卷二十九) 鈷鉧潭西小丘記〔一〕 得西山後八日〔二〕,尋山口西北道二百步,又得鈷鉧潭〔三〕。

    潭西二十五步,當湍而浚者爲魚梁〔四〕。

    梁之上有丘焉,生竹樹。

    其石之突怒偃蹇〔五〕,負土而出〔六〕,争爲奇狀者〔七〕,殆不可數〔八〕。

    其嶔然相累而下者〔九〕,若牛馬之飲於溪〔一〇〕;其衝然角列而上者〔一一〕,若熊羆之登於山〔一二〕。

     丘之小不能一畝〔一三〕,可以籠而有之〔一四〕。

    問其主,曰:“唐氏之棄地,貨而不售〔一五〕。

    ”問其價,曰:“止四百。

    ”餘憐而售之〔一六〕。

    李深源、元克己時同遊〔一七〕,皆大喜,出自意外。

    即更取器用〔一八〕,剷刈穢草〔一九〕,伐去惡木〔二〇〕,烈火而焚之〔二一〕。

    嘉木立,美竹露,奇石顯〔二二〕。

    由其中以望〔二三〕,則山之高,雲之浮,溪之流,鳥獸之遨遊〔二四〕,舉熙熙然迴巧獻技,以効茲丘之下〔二五〕。

    枕席而卧〔二六〕,則清泠之狀與目謀〔二七〕,瀯瀯之聲與耳謀〔二八〕,悠然而虛者與神謀〔二九〕,淵然而靜者與心謀〔三〇〕。

    不匝旬而得異地者二〔三一〕,雖古好事之士,或未能至焉〔三二〕。

     噫!以茲丘之勝〔三三〕,緻之灃、鎬、鄠、杜〔三四〕,則貴遊之士争買者〔三五〕,日增千金而愈不可得〔三六〕。

    今棄是州也〔三七〕,農夫漁父過而陋之〔三八〕,賈四百,連歲不能售〔三九〕。

    而我與深源、克己獨喜得之,是其果有遭乎〔四〇〕!書於石,所以賀茲丘之遭也〔四一〕。

     〔一〕本篇是“永州八記”第三篇,與上兩篇同時作。

    鈷鉧潭:見上篇注。

    小丘:小山。

     〔二〕得西山:發現西山。

    後八日:元和四年九月二十八日得西山,後八日即十月初七日。

     〔三〕尋:緣,順着。

    道:步行。

    步:古度量單位,見《永州龍興寺息壤記》注〔三〕。

    鈷鉧潭:從鈷鉧潭説來,含得異地二。

     〔四〕當湍句:謂在急流深水處是一道魚梁。

    當:值,對。

    湍(tuān):急流的水。

    《説文》:“湍,疾瀨也。

    ”浚(jùn):深。

    魚梁:障水的石堰,又可捕魚。

    壘石於河中爲攔水堰,中留空洞,置笱(gǒu,竹製捕魚器)於空洞處,魚順流而入笱,不能逃出。

     〔五〕突怒:高起挺出貌。

    偃蹇(yǎnjiǎn):高聳貌。

    《離騷》:“望瑤臺之偃蹇兮,見有娀之佚女。

    ”注:“偃蹇,高貌。

    ” 〔六〕負土句:謂頂起泥土露出。

     〔七〕爲奇狀:呈現出奇特形狀。

     〔八〕殆(dài):幾乎。

    謂幾乎數不清,極言奇石之多。

     〔九〕嶔(qīn)然:山石高峻貌。

    相累:互相連接、重疊。

    下:石勢向下。

     〔一〇〕若牛句:謂如成羣的牛馬往溪邊飲水。

     〔一一〕衝然:突起貌。

    角:《文選》潘嶽《射雉賦》徐爰注:“角,邪也。

    ”角列,象獸角那樣斜列。

     〔一二〕若熊句:謂如熊羆向山上爬。

    羆(pí):熊的一種。

     〔一三〕不能:不足。

    能,及,到。

    《淮南子·脩務訓》:“不能被德承澤。

    ”注:“能,猶及也。

    ” 〔一四〕可以句:謂能以全部牢籠在内。

     〔一五〕唐氏二句:是唐家廢棄的土地,想賣而賣不掉。

    貨:出賣。

     〔一六〕止:僅僅,不過。

    四百:四百文錢。

    憐:喜愛。

     〔一七〕李深源、元克己:俱人名,未詳,當爲宗元在永州的友人。

     〔一八〕即:當即。

    更(gēng):輪換。

    器用:器具,此指鋤草工具。

     〔一九〕剷:削平。

    刈(yì):割。

    穢(huì)草:雜草。

     〔二〇〕惡木:不成材的樹,灌木荊棘之類。

     〔二一〕烈火句:用猛火燒它。

     〔二二〕嘉木三句:謂美好的樹木、秀美的竹子、奇異的山石都顯現出來。

    立,挺立而不受遮避,與“露”、“顯”義同。

     〔二三〕其中:小丘中。

    以:而。

     〔二四〕遨遊:自由自在地走動或飛翔。

     〔二五〕舉熙二句:謂都愉悅快樂地運其巧慧,獻其長技,呈現在這小丘下面,這裏把自然物人格化了。

    舉:全。

    熙熙(xī)然:和樂貌。

    迴:運,引申爲表現。

    揚雄《太玄經·玄攡》:“天日迴行,剛柔接矣。

    ”範望注:“迴,猶運也。

    ”“迴”同“回”。

    効:即效。

    《玉篇》:“効,俗效字。

    ”效,呈獻。

    《禮記·曲禮上》:“效馬效羊者右牽之,效犬者左牽之。

    ”注:“效,猶呈也。

    ”茲:此。

     〔二六〕枕席句:謂卧於小丘上。

     〔二七〕清泠(líng):清徹明浄,指水。

    謀:相合。

     〔二八〕瀯瀯(yíng):水流聲。

     〔二九〕悠然:天空遼遠無窮貌。

    虛:空。

     〔三〇〕淵然:靜默貌。

    上句與此句謂精神心靈與空虛靜默的天空融合爲一。

    指客觀事物和人的感官相和諧融合。

     〔三一〕匝(zā):《説文》:“帀,周也。

    ”俗作匝。

    引申爲滿。

    旬:十天。

    異地:風景奇異之地。

    二:二處,指西山和鈷鉧潭西小丘,與本文首句相應。

     〔三二〕好事之士:好遊覽之人。

    至:達到,辦到。

    焉:這。

     〔三三〕勝:景物優美曰勝。

     〔三四〕緻之:送它到,把它安排在。

    灃:借爲“酆”,邑名。

    《説文》:“酆,周文王所都,在京兆杜陵西南。

    ”鎬(hào):古地名,周初國都,在長安西。

    鄠(hù):漢縣名,唐京兆府鄠縣,今陝西戶縣。

    杜:此指杜陵,在長安東南。

    《元和郡縣圖志》卷一京兆府萬年縣:“杜陵,在縣東南二十裡,漢宣帝陵也。

    ”按:灃、鎬、鄠、杜泛指長安城郊,唐時富豪之家多建别墅於此。

     〔三五〕貴遊之士:王公貴族子弟。

    《周禮·地官·師氏》:“凡國之貴遊子弟學焉。

    ”注:“貴遊子弟,王公之子弟,遊無官司者。

    ”争買者:争買小丘的。

     〔三六〕日增句:謂小丘的售價每天增加千金,越發買不到。

     〔三七〕棄:被拋棄。

     〔三八〕陋之:以之(小丘)爲陋,看不起它。

     〔三九〕賈四二句:謂價格僅四百錢,卻幾年也賣不掉。

    賈,同價,價格。

     〔四〇〕遭:機遇。

    果有遭,終於遇到了好機會。

     〔四一〕書於二句:謂作此文寫在石上,用來祝賀小丘的好運氣。

    書:寫此文。

     【評箋】 清·林雲銘雲:“子厚遊記,篇篇入妙,不必復道。

    此作把丘中之石,及既售得之後,色色寫得生活,尤爲難得。

    末段以賀茲丘之遭,借題感慨,全説在自己身上。

    蓋子厚向以文名重京師,諸公要人,皆欲令出我門下,猶緻茲丘於灃鎬鄠杜之間也。

    今謫是州,爲世大僇,庸夫皆得詆訶,頻年不調,亦何異爲農夫漁父所陋,無以售於人乎?乃今茲丘有遭,而己獨無遭,賀丘所以自弔,亦猶《起廢之答》無躄足涎顙之望也。

    嗚乎!英雄失路至此,亦不免氣短矣。

    讀者當於言外求之。

    ”(《古文析義》初編卷五) 清·汪基雲:“篇中淋漓感慨,具無限深情,不徒以雕繪景色爲工。

    至於埋伏照應,針縷細密,作家原自不苟。

    此特妙在布置自然,渾化無迹。

    ”(慕巖參評《古文喈鳳新編》評語) 清·孫琮雲:“此篇平平寫來,最有步驟。

    一段先叙小丘,次叙買丘,又次叙闢蕪刈穢,又次叙避賞此丘,末後從小丘上發出一段感慨,不攙越一筆,不倒用一筆。

    妙,妙。

    ”(《山曉閣選唐大家柳柳州全集》評語卷三記) 清·朱宗洛雲:“凡前後呼應之筆,皆文章血脈貫通處。

    然要周匝,又要流動,要自然,又要變化,此文後一段可法。

    有兩篇聯絡法,如此文起處是也。

    有取勢歸源法,如此文先言竹樹及石之奇,而以‘籠而有之’句勒住是也。

    有有意無意默默生根法,如此文中下一‘憐’字,爲末段伏感慨之根,下一‘喜’字,爲結處‘賀’字作張本也。

    ”(《古文一隅》評語卷中) 陳衍雲:“‘嶔然相累’四句,狀潭處向上向下之石,工妙絶倫。

    殆即從《無羊》詩‘或降於阿,或飲於池’名句悟出。

    後‘清泠之狀’四句,與此相映帶,用《考工記》‘進與馬謀,退與人謀’句法,可謂食古能化。

    ”(《石遺室論文》卷二) 至小丘西小石潭記〔一〕 從小丘西行百二十步,隔篁竹〔二〕,聞水聲,如鳴珮環〔三〕,心樂之〔四〕。

    伐竹取道〔五〕,下見小潭,水尤清冽〔六〕。

    全石以爲底〔七〕,近岸卷石底以出〔八〕,爲坻爲嶼〔九〕,爲嵁爲巖〔一〇〕。

    青樹翠蔓,蒙絡搖綴,參差披拂〔一一〕。

     潭中魚可百許頭〔一二〕,皆若空遊無所依〔一三〕。

    日光下澈〔一四〕,影布石上〔一五〕,佁然不動〔一六〕;俶爾遠逝〔一七〕,往來翕忽〔一八〕,似與遊者相樂。

     潭西南而望〔一九〕,鬥折蛇行〔二〇〕,明滅可見〔二一〕。

    其岸勢犬牙差互〔二二〕,不可知其源〔二三〕。

     坐潭上,四面竹樹環合,寂寥無人〔二四〕,淒神寒骨〔二五〕,悄愴幽邃〔二六〕。

    以其境過清〔二七〕,不可久居〔二八〕,乃記之而去。

     同遊者,吳武陵、龔古〔二九〕,餘弟宗玄〔三〇〕,隸而從者〔三一〕,崔氏二小生〔三二〕,曰恕己,曰奉壹〔三三〕。

     〔一〕本篇爲“永州八記”第四篇。

    小丘:即鈷鉧潭西小丘。

    小石潭:以潭底是石,故名。

    《大清一統志》卷二八三永州府:“小石潭,在零陵縣西小丘之西。

    ” 〔二〕篁(huáng):《説文》:“篁,竹田也。

    ”又竹名。

    晉戴凱之《竹譜》:“篁竹堅而促節,體圓而質堅,皮白如霜粉。

    ” 〔三〕如鳴句:謂就像玉珮玉環相碰發出的響聲。

    珮:玉珮。

    即雜珮,以玉爲之,珩、璜、琚、瑀之類。

    環:玉環。

    皆古人腰間所佩之玉飾。

     〔四〕樂之:謂喜歡它。

     〔五〕取道:開條路。

     〔六〕見(xiàn):現的本字,出現。

    尤:更加。

    冽(liè):寒。

    一本作“洌”,《説文》:“洌,水清也。

    ” 〔七〕全石句:謂潭底是整塊大石。

     〔八〕近岸句:謂靠近岸邊,石底從水中卷出來。

     〔九〕爲:形成。

    坻(chí):水中陸地。

    嶼(yǔ):《説文》:“嶼,島也。

    ” 〔一〇〕嵁(kān):不平的巖石。

    《集韻》:“山高貌。

    ”巖(yán):山巖,山壁。

    上句及此句寫潭石呈現的各種形狀。

     〔一一〕蒙絡二句:寫緑藤纏繞覆蓋在青樹上,搖擺下垂,長短不齊,隨風飄動。

    蒙:覆蓋。

    絡:纏繞。

    搖綴:搖擺連綴。

    參差(cēncī):長短不齊。

    披拂:拂動。

     〔一二〕可:大約。

    許:表示約略估計的量詞。

     〔一三〕皆若句:極寫水清。

    依:憑依,依托。

    明楊慎《丹鉛雜録》卷七:“此語本之酈道元《水經注》:‘渌水平潭,清潔澄深,俯視遊魚,類若乘空。

    ’沈佺期詩‘魚似鏡中懸’亦用酈語意也。

    ” 〔一四〕下:日光下射。

    澈:洞澈,照及潭底。

     〔一五〕影:魚影。

    布:陳列,指映在。

     〔一六〕佁(ǎi)然:癡呆貌。

    《説文》:“佁,癡貌。

    讀若騃。

    ”“佁”,世綵堂一本作“怡”。

    據《文苑英華》改。

     〔一七〕俶(chù)爾:動貌。

    《方言》卷十二:“俶,動也。

    ”逝:往。

    此指遠去。

     〔一八〕翕(xī)忽:迅疾貌。

    左思《吳都賦》:“神化翕忽,函幽育明。

    ”李善注:“翕忽,疾貌。

    ”以上寫魚之遊行澄水中,如化工肖物,窮微盡妙。

     〔一九〕潭西句:謂由潭向西南望去。

     〔二〇〕鬥折:溪水像北鬥星那樣曲折。

    蛇行:溪水像遊蛇一樣蜿蜒。

     〔二一〕明:指水光可見。

    滅:謂爲岸遮蔽而不可見。

    因溪水曲折,故水光或隱或現。

     〔二二〕犬牙句:謂溪岸曲折如狗牙般交錯不齊。

    犬牙:狗牙。

    差(cī)互:參差交錯貌。

     〔二三〕其源:潭水的來源。

    何焯曰:“石岸差互,故水流皆作鬥折蛇行之勢,爲岸所蔽,雖明滅可見,莫窮其源也。

    ”(《義門讀書記》評語) 〔二四〕寂寥(liáo):寂靜。

     〔二五〕淒神句:謂使精神淒涼,使肌骨寒冷。

     〔二六〕悄愴(qiǎochuàng):淒慘。

    《楚辭·九思·逢尤》注:“悄,猶慘也。

    ”幽邃:幽深。

     〔二七〕以:因爲。

    境:兼指環境和氣氛。

     〔二八〕居:停留。

     〔二九〕吳武陵:宗元好友,元和三年貶官永州,詳見《初秋夜坐贈吳武陵》詩注〔一〕。

    龔古:人名,未詳。

    龔,一本作“襲”。

    古,一本作“右”。

     〔三〇〕宗玄:宗元的從弟。

    宗元無胞弟,從弟見於集中者有宗一、宗玄、宗直。

     〔三一〕隸而從者:謂作爲侍奉而跟隨同來的人。

     〔三二〕小生:小青年。

     〔三三〕恕己、奉壹:孫汝聽注雲:“崔簡之子也。

    ”按:崔簡,字子敬,博陵安平(今河北定縣)人,宗元姊夫。

    貞元五年進士第,累官至刑部員外郎。

    出刺連、永二州,未至永州,坐流驩州。

    元和七年正月二十六日卒。

    二子奉喪踰海,遇暴風溺死。

    參見宗元《故永州刺史流配驩州崔君權厝記》、《祭姊夫崔使君簡文》、《祭崔氏外甥文》等文。

    諸文稱簡之二子爲“處道”、“守訥”,又稱“韋六”、“小卿”,而本文稱“恕己”、“奉壹”,所稱不同,今不能詳。

     【評箋】 清·林紓雲:“《小石潭記》則水石合寫,一種幽僻冷豔之狀,頗似浙西花隖之藕香橋。

    ‘坻’、‘嶼’、‘嵁’、‘巖’,非真有是物,特石自水底挺出,成此四狀。

    其上加以‘青樹翠蔓,蒙絡搖綴,參差披拂’,是無人管領,草木自爲生意。

    寫溪中魚百許頭,空遊若無所依,不是寫魚,是寫日光。

    日光未下澈,魚在樹陰蔓條之下,如何能見。

    其‘怡然不動,俶爾遠遊,往來翕忽’之狀,一經日光所澈,了然俱見。

    ‘澈’字,即照及潭底意,見底即似不能見水,所謂‘空遊無依’者,皆潭水受日所緻。

    一小小題目,至於窮形盡相,物無遁情,體物直到精微地步矣。

    ‘潭西南而望,鬥折蛇行,明滅可見。

    ’此中不必有路,特借之爲有餘不盡之思。

    至‘竹樹環合,寂寥無人’,文有詩境,是柳州本色。

    ”(《韓柳文研究法·柳文研究法》) 清·陳衍雲:“《小石潭記》,極短篇,不過百許字,亦無特别風景可以出色,始終寫水竹淒清之景而已。

    而前言‘心樂’,中言潭中魚與遊者相樂;後‘淒神寒骨’,理似相反,然樂而生悲,遊者常情。

    大而汾水,小而蘭亭,此物此志也。

    其寫魚雲:‘潭中魚可百許頭……往來翕忽。

    ’工於寫魚,工於寫水之清也。

    ”(《石遺室論文》卷四) 袁家渴記〔一〕 由冉溪西南水行十裡〔二〕,山水之可取者五〔三〕,莫若鈷鉧潭〔四〕。

    由溪口而西,陸行,可取者八九,莫若西山〔五〕。

    由朝陽巖東南〔六〕,水行至蕪江〔七〕,可取者三,莫若袁家渴。

    皆永中幽麗奇處也〔八〕。

     楚、越之間方言,謂水之支流者爲“渴”〔九〕。

    音若“衣褐”之“褐”〔一〇〕。

    渴上與南館高嶂合〔一一〕,下與百家瀨合〔一二〕。

    其中重洲小溪〔一三〕,澄潭淺渚〔一四〕,間廁曲折〔一五〕,平者深墨,峻者沸白〔一六〕。

    舟行若窮,忽又無際〔一七〕。

     有小山出水中,山皆美石,上生青叢,冬夏常蔚然〔一八〕。

    其旁多巖洞,其下多白礫〔一九〕,其樹多楓柟石楠〔二〇〕、楩櫧樟柚〔二一〕,草則蘭芷〔二二〕。

    又有異卉〔二三〕,類合歡而蔓生〔二四〕,轇轕水石〔二五〕。

    每風自四山而下,振動大木〔二六〕,掩苒衆草〔二七〕,紛紅駭緑〔二八〕,蓊葧香氣〔二九〕,衝濤旋瀨〔三〇〕,退貯谿谷〔三一〕,搖颺葳蕤〔三二〕,與時推移〔三三〕。

    其大都如此,餘無以窮其狀〔三四〕。

     永之人未嘗遊焉,餘得之不敢專也〔三五〕。

    出而傳於世〔三六〕。

    其地主袁氏,故以名焉〔三七〕。

     〔一〕本篇爲“永州八記”第五篇,與後三篇合稱“後四記”,同作於元和七年(八一二),較“前四記”晚三年。

    “前四記”以“西山”領起,“後四記”以“袁家渴”領起。

    渴(hè):水之支河爲渴,分主流之水爲渴,一説稱壘土之水爲渴。

    參見注〔九〕、〔一〇〕。

    袁家渴,渴爲袁某之産,故宗元以其姓名之爲袁家渴,猶今之張家屯、李家莊之類。

    《輿地紀勝》永州:“袁家渴在州南十裡,嘗有姓袁者居之,兩岸木石奇怪,子厚記之。

    ”《大清一統志》卷二八二永州府:“袁家渴在零陵縣南。

    ” 〔二〕冉溪:見《始得西山宴遊記》注〔一八〕及《愚溪詩序》。

     〔三〕可取者:可擇取的,謂可供遊覽的。

    五:五處。

     〔四〕莫若:沒有哪處能比。

    鈷鉧潭:見上《鈷鉧潭記》。

     〔五〕溪口:指冉溪入湘水處。

    西山:見上《始得西山宴遊記》。

     〔六〕朝陽巖:在永州城西南,唐元結所遊並命名處,其《朝陽巖銘并序》雲:“永泰丙午中,自舂陵詣都使計兵,至零陵。

    愛其郭中有水石之異,泊舟尋之。

    得巖與洞,此邦之形勝也,自古荒之而無名稱,以其東向,遂以朝陽命之焉。

    ”《方輿勝覽》卷二十五永州:“朝陽巖,在零陵南二裡,下臨瀟水。

    舊經道州刺史元結魯山維舟山下,以地高而東向,遂名朝陽。

    ”《大清一統志》卷二八二永州府:“朝陽巖,在零陵縣西南。

    ” 〔七〕蕪江:未詳。

    宗元詩文及方志中無此江。

    或疑“蕪”爲“瀟”之誤。

     〔八〕永:永州。

     〔九〕楚越之間:指永州一帶。

    參見《永州龍興寺息壤記》注〔六〕。

     〔一〇〕音若句:以褐注音。

     〔一一〕上:上遊。

    南館:永州地名,未詳。

    嶂:似屏障的山峰。

     〔一二〕下:下遊。

    百家瀨(lài):永州地名。

    《湖南通志》卷十八永州府零陵縣:“百家瀨,在縣南裡許,一泓寒碧,其容如練。

    ” 〔一三〕重(chóng):多。

    重洲,諸多沙洲。

     〔一四〕渚:水中小塊陸地。

    《説文》:“《爾雅》曰,小洲曰渚。

    ” 〔一五〕間廁句:謂雜列於曲折的渴中。

    間(jiàn):雜列。

    廁(cì):雜置。

    《廣雅·釋言》:“廁,間也。

    ”《玉篇》:“廁,雜也。

    ” 〔一六〕平者二句:謂水勢平穩處,呈現深黑色;遇洲渚而湧起浪花,呈現出白色。

    峻:高貌,此指浪高。

    沸:水噴湧貌。

     〔一七〕舟行二句:謂船行前方好像已無路可通,忽然眼前又出現無邊的境地。

    沈德潛雲:“八字已抵一篇遊記。

    ”(《唐宋八家文讀本》)陸遊《遊山西村》“山重水複疑無路,柳暗花明又一村”或有淵源。

    窮:不通。

    際:邊。

     〔一八〕青叢:青色的草樹叢。

    蔚(wèi)然:草木茂盛貌。

     〔一九〕礫(lì):碎石子。

    《説文》:“礫,小石也。

    ” 〔二〇〕柟(nán):木名,即楠木。

    又寫作“枏”。

    石楠:童宗説注:“石楠,亦木名。

    ”高步瀛注:“石楠當作石南。

    《證類本草》卷十四引陶隱居曰:‘石南葉狀如枇杷葉。

    ’又引《圖經》曰:‘石南生於石上,株極有高大者。

    江湖間出者,葉如枇杷葉,有小刺,淩冬不凋,春生白花成簇,秋結細紅實。

    ’”(見《唐宋文舉要》甲編卷四) 〔二一〕楩櫧(piánzhū)樟柚:楩又音駢。

    孫汝聽注:“楩木似豫章。

    櫧木似柃,葉冬不落。

    樟,即豫章。

    柚,橘類也。

    ” 〔二二〕蘭芷(zhǐ):兩種香草。

    蘭,《説文》:“香草也。

    ”按:即今澤蘭。

    芷,香草,又名白芷。

     〔二三〕異卉(huì):奇特的草。

    《説文》:“卉,草之總名也。

    ” 〔二四〕類:像。

    合歡:草名。

    《古今注》卷下《草木》條:“合歡樹似梧桐,枝葉互相交結,每風來輒身相解,了不相牽綴。

    ”《證類本草》卷十三引《圖經》曰:“合歡,夜合也,本似梧桐,枝甚柔弱,葉似皂莢、槐等,極細而繁密,其葉至暮而合,故一名合昏。

    ”按:合歡又名馬櫻花、榕花,花淡紅色。

    古人常以合歡贈人,取可以合好消怨之意。

    嵇康《養生論》:“合歡蠲忿,萱草忘憂。

    ”蔓生:不能直立,附它物而生長。

     〔二五〕轇轕(jiāogé):縱橫交雜貌。

    《文選》張衡《東京賦》:“雲罕九斿,闟戟轇轕。

    ”薛注:“轇轕,雜亂貌。

    ”李善注:“轇轕,參差縱橫也。

    ”此謂縱橫錯雜地分布在水石之上。

     〔二六〕大木:高大的樹。

     〔二七〕掩苒(rǎn):風吹物靡貌。

     〔二八〕紛紅句:謂紅花緑葉皆紛亂搖動。

    紛,亂。

    紅,指花。

    駭,驚。

    緑,指葉。

     〔二九〕蓊葧(wěngbó):孫汝聽注:“草茂貌。

    ”按:此謂香氣濃盛。

     〔三〇〕衝濤:謂大風掀起波濤。

    瀨(lài):急流。

    屈原《九歌·湘君》:“石瀨兮淺淺,飛龍兮翩翩。

    ”注:“瀨,湍也。

    ”旋瀨,言大風使急流迴旋。

     〔三一〕退貯句:指水波後退流入谿谷中。

     〔三二〕搖颺(yáng):搖蕩。

    葳蕤(wēiruí):草木茂盛貌。

    東方朔《七諫》:“上葳蕤而防露兮。

    ”注:“葳蕤,盛貌。

    ”《玉篇》:“葳蕤,草木實垂貌。

    ” 〔三三〕與時句:謂隨着四時的不同而變化。

    推移,變遷。

    此處就山草木一并收在水上,造語精妙之極。

     〔三四〕其大二句:謂袁家渴的景色大概如此,我無法把它的全部景象都寫出來。

    其,指代袁家渴的景色。

    大都,大概。

    窮,盡,全。

    清何焯雲:“‘每風自四山而下’至‘大都如此’,發明反流襯筆,尤狀出幽麗。

    ”(《義門讀書記》評語) 〔三五〕專:獨佔,獨自享受。

     〔三六〕出:指寫成此記。

     〔三七〕其地二句:謂渴世代屬於袁氏,所以用“袁家”命名。

     【評箋】 清·孫琮雲:“讀《袁家渴》一記,隻如一幅小山水,色色畫到。

    其間寫水,便覺水有聲;寫山,便覺山有色;寫樹,便覺枝幹扶疎;寫草,便見花葉搖曳。

    直是流水飛花,俱成文章者也。

    ”(《山曉閣選唐大